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भू-क़ानून बनाने के लिये आंदोलनरत आन्दोलनकारियों को किशोर का समर्थन

भू-क़ानून बनाने के लिये आंदोलनरत आन्दोलनकारियों को किशोर का समर्थन
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देहरादून। वनाधिकार आंदोलन के संस्थापक और प्रणेता किशोर उपाध्याय ने आज देहरादून में उत्तराखंड के लिये भू-क़ानून बनाने के लिये आंदोलनरत आन्दोलनकारियों को समर्थन दिया।

आन्दोलनकारियों को सम्बोधित करते हुये उपाध्याय ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि यहाँ के जल, जंगल और जमीन पर यहाँ के निवासियों का अधिकार नहीं है। पुनर्गठन विधेयक में यहाँ के हितों को गिरवी रख दिया गया।

उपाध्याय ने कहा कि हमें उत्तराखंड की शत-प्रतिशत ज़मीन की बात करनी चाहिये मात्र एक छोटे हिस्से की नहीं। हमें 2006 के वनाधिकार कानून के आलोक में जंगलों पर अपने पुश्तैनी हक़-हक़ूक़ वापस लेने चाहिये।

वनाधिकार क़ानून के आलोक में मुआवजे के रूप में परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार पक्की सरकारी नौकरी दी जाय, केंद्र सरकार की सेवाओं में आरक्षण दिया जाय, बिजली पानी व रसोई गैस निशुल्क दी जाय, जड़ी बूटियों पर स्थानीय समुदायों को अधिकार दिया जाय।

कहा कि  जंगली जानवरों से जनहानि होने पर परिवार के एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी  तथा ₹ 50 लाख  क्षतिपूर्ति दी जाय। फसल की हानि पर प्रतिनाली ₹ 5000/- क्षतिपूर्ति दी जाय, एक यूनिट आवास निर्माण के लिये लकड़ी, रेत-बजरी व पत्थर निशुल्क दिया जाय, उत्तराखंडियों को OBC घोषित किया जाये, भू-कानून बनाया जाए, जिसमें वन व अन्य भूमि को भी शामिल जाय, राज्य में तुरंत चकबंदी की जाय।

एक अन्य बयान में उपाध्याय ने आपदा का शिकार हुए लोगों के आश्रितों को लखीमपुर खीरी हिंसा का शिकार बने किसानों के समान ही राहत राशि देने की मांग की। 

आपदा प्रभावित क्षेत्र नैनीताल और यूएसनगर का दौरा कर लौटे किशोर ने रविवार को दून में मीडिया से बातचीत में में यह मांग की। कहा कि राज्य 21 साल का हो चुका है लेकिन अब तक मध्य हिमालय व राज्य की आवश्यकता के अनुसार आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण का अचूक सिस्टम विकसित नहीं हो पाया।

उपाध्याय ने कहा कि क्लाइमेट चेंज विश्व की सबसे बड़ी चुनौती है। उत्तराखंडियों को वनों पर उनके पुश्तैनी हक़-हक़ूक़ और अधिकार देकर राज्य में काफ़ी हद तक इसे रोका जा सकता है। कहा कि जल्द ही वो इस मुद्दे पर सीएम पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि आपदा की वजह से ध्वस्त और ख़तरे की जद में आये मकानों की पूरी क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिये। आपदा में बर्बाद हुए घरेलू सामान का मुआवजा भी सरकार को देना चाहिए।


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Govind Pundir

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