श्रीमद् भागवत सप्ताह के बाद गंगा स्नान का पौराणिक महत्व — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
रायवाला हरिद्वार। नृसिंह वाटिका आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी रसिक महाराज एवं भागवत भूषण आचार्य डॉक्टर कैलाश घिल्डियाल ने आज श्रीमद्भागवत कथा के उपरांत आवाहित सामग्री विसर्जन एवं गंगा स्नान किया। इस अवसर पर नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि हरिद्वार भारत के राज्य उत्तराखंड का एक शहर तथा हिन्दुओं की पवित्र नगरी है।
कहा कि पौराणिक हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयी जब धन्वन्तरि उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। ध्यातव्य है कि कुंभ या महाकुंभ से सम्बद्ध कथा का उल्लेख किसी पुराण में नहीं है। प्रक्षिप्त रूप में ही इसका उल्लेख होता रहा है। अतः कथा का रूप भी भिन्न-भिन्न रहा है।
मान्यता है कि चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे चार स्थान क्रमशः उज्जैन,हरिद्वार, नासिक और प्रयाग हैं. इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर १२ वें वर्ष महाकुंभ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होकर फिर पहले स्थान पर महाकुम्भ का समय आ जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।
कथावाचक आचार्य डॉक्टर कैलाश घिल्डियाल ने बताया कि एक मान्यता के अनुसार वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। ‘हर की पौड़ी’ हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहां स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है।