आरोग्य भवः: प्राणवायु में संकट….
*जगत सागर बिष्ट*
मानव हो या अन्य प्राणी प्रत्येक के लिए प्राणवायु आवश्यक मानी जाती रही है। मानव अपनी जरूरतों के लिए ऐसे ऐसे आविष्कार कर रहा है जिससे भविष्य में प्राणवायु को संकट बना रह सकता है। इन कारणों से मानव विभिन्न बीमारियों का घर बनता जा रहा है। जंगली जानवर के साथ विभिन्न प्रजाति के जानवर व पक्षियों का संसार से नामों निशान समाप्त हो गया है। जिसका प्रमुख कारण मानव रहा है।
आज मानव ही प्राणवायु में संकट से डर रहा है। पराली हो या उद्योग यातायात जंगलों के लगातार तेज गति से विकास के नाम पर हो रहे पेड़ों के कटान व अन्य विकास व विस्तार वादी सोच भी प्राणवायु को खतरा पैदा कर रही है। अपने देश को पहले पायदान में लाने व अपना दबदबा बरकरार रखने के लिए देशों में युद्धाभ्यास की होड़ सी आ गयी है। जिसमें अरबों-खरबों का प्रतिदिन बारूद फोड़ा जा रहा है। इसका बड़ा प्रभाव भी प्राणवायु पर संकट का कारण बन रहा है।
प्रत्येक वर्ष उत्तर भारत में पराली जलाने के कारण प्रदूषण और इसके नतीजे में आसमान में छाई जहरीली वायु की शुरुआत होती है। वही पॉलीथिन प्लास्टिक व केमिकल युक्त बड़ी बड़ी फैक्ट्रियां भी प्राणवायु को संकट पैदा कर रही हैं। सरकारे छोटे-छोटे व्यापारियों पर कार्यवाही कर इतिश्री कर लेती हैं। बड़े उद्योग सालों से चलते आ रहे है, इन इकाइयों में सरकार प्रदूषण के नाम पर प्रत्येक साल करोड़ों की वसूली कर अपने खजाने को भर रही है लेकिन प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों को बंद नहीं करती है। जिससे प्राणवायु की कमी से हर साल सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है।
अपने क्षणिक लाभ व आराम के लिए प्रकृति से खिलवाड़ करने की हमारी प्रवृति को नियंत्रित करने के लिए आखिरकार कानून का डंडा ही क्यों जरुरी है ? कोई प्राणी बिना पानी के तीन से पांच दिन और बिना भोजन के तीन माह लेकिन प्राणवायु के अभाव में पांच मिनट प्राणी की जान ले सकता है। अगर हवा प्रदूषित हो तो जाहिर सी बात है कि वह धीरे धीरे हमारे शरीर में जहर घोलती है। धीमी मौत की ओर धकेलती है। आंकड़े बताते हैं देश में हर साल वायु प्रदूषण के कारण करीब 12 लाख लोगों की जान चली जाती है। इस तरह के शोध से पता चलता है कि वायु प्रदूषण के कारण कैंसर दिमाग व सांस संबंधी कई बीमारियां हो रही है। बिगड़ती प्राणवायु इसका सीधा कारण है। देश में बढ़ते प्रदूषण के साथ विदेशों से आने वाले प्रदूषण भी हानिकारक वजहों में से एक है।
यही कारण है कि कुछ चुनिंदा देशों द्वारा किए जा रहे कार्बन डाइऑक्साइड प्रदूषण तत्वों के उत्सर्जन से होने वाले संकट को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोरदार बहसे होती हैं।
पर्यावरण पर्यवेक्षण तंत्र पर नासा की रिसर्च लैब गार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर द्वारा किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि घूमने के नाम पर गर्मियों के मौसम में लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा सैकड़ों किलोमीटर चलकर एक जगह इकट्ठा हो जाता है। इससे भी प्रदूषण दर बढ़ जाती है। पर्यावरण को शुद्ध व ताजा रखने के उद्देश्य से हर साल 6 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण दोहन रोकथाम दिवस मनाया जाता है। हालांकि यह दिवस खास तौर पर युद्ध में हुए पर्यावरण क्षय को समर्पित है। किंतु जीवन जीने के युद्ध में पर्यावरण को होने वाले नुकसान की वजह भी हम इंसान ही है। प्राणवायु को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार, मानव को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है, जिससे आने वाली पीढ़ी को शुद्ध प्राणवायु देने में हमारा समाज सफल हो सके ।