सेहत के लिए फायदेमंद है गुणकारी एवं औषधीय पौधा मेथी: भरत गिरी गोसाई
मेथी मनुष्य द्वारा इस्तेमाल होने वाली प्राचीनतम घरेलू उपचार हेतु औषधीय पौध एवं मसाला है। मेथी को अंग्रेजी मे फेनुग्रीक, संस्कृत मे गंधफला अथवा ज्योति, गुजरात एवं पंजाबी मे मेथिनी, तमिल एवं मलयालम मे वेथियम तथा हिंदी मे साग मेथी कहा जाता है। मेथी फैबेसिया परिवार का सदस्य है जिसका वानस्पतिक नाम ट्राईगोनेला फीनम है। मेथी की उत्पत्ति भूमध्य रेखीय क्षेत्र माना जाता है। मेथी एक वार्षिक पौधा है, जोकि सामान्यतः 75 से 100 सेंटीमीटर लंबा होता है। मेथी की फली मे 10-20 छोटे-छोटे लाल, पीले अथवा भूरे रंग के तीक्ष्ण सुगंधित बीज पाए जाते है, जोकि स्वाद मे कड़वे होते है।
मेथी मे पाए जाने वाले आवश्यक तत्व: वैज्ञानिक अध्ययनो के अनुसार मेथी मे प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन, विटामिन जैसे थायमिन, फोलिक एसिड, राइबोफ्लेविन, नियासीन, आयरन, सेलेनियम, जिंक, मैग्नीज एवं मैग्नीशियम पाया जाता है। मेथी पौध के सामान्य बीज एवं पत्तियां उपयोग मे लाये जाते है। मेथी के पत्तियां विटामिन के एवं बीज लाइसिन एवं ट्रैप्टोफान की अच्छी स्रोत माने जाते है।
मेथी के औषधीय उपयोग: वैज्ञानिक खोजो द्वारा सिद्ध हुआ है कि मेथी के बीज मे एंटीइन्फ्लेमेटरी एवं एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है, जोकि जोड़ों की सूजन को कम करके अर्थराइटिस के दर्द से राहत दिलाने मे सहायक है। नियमित रूप से मेथी के सेवन करने से ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है जिससे दिल स्वस्थ रहता है एवं दिल का दौरा पड़ने की आशंका बहुत कम होती है। मेथी के बीज मे भरपूर मात्रा मे प्रोटीन पाया जाता है जिसका नियमित सेवन करने से शरीर मे रक्त प्रभाव संतुलित रहता है। गंजेपन, बालों का पतला होना, बालों का झड़ना इत्यादि रोगो से भी निजात पाया जा सकता है। मेथी मे पाए जाने वाला एस्टोजन हार्मोन महिलाओ को मासिक धर्म के दौरान राहत दिलाने मे कारगर साबित होती है। मेथी मे पॉलिफिनॉलिक फ्लेवोनॉयड रसायन पाया जाता है जोकि किडनी को बेहतर तरीके से काम करने मे मदद करता है। रोजाना एक चम्मच मेथी पाउडर के सेवन से टाइप-2 मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है। मधुमेह पर मेथी का प्रभाव इसमे मौजूद हाइपोगिलसेमिक रसायन के प्रभाव से होता है। मेथी के बीजो का काढ़ा पीने से पेचिश मे लाभ मिलता है। वैज्ञानिक अध्ययनो से ज्ञात हुआ है कि घाव मे अगर सूजन एवं जलन की समस्या होती है तो मेथी के पतियो को पीसकर घाव मे लगाने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है। मेथी की सूखी पत्तियो का लेप त्वचा संबंधित रोग जैसे दाद, खाज, खुजली या एग्जिमा को ठीक करने मे कारगर साबित होती है। आयुर्वेद के अनुसार मेथी के बीजों मे वात एवं पित्त रोगो को खत्म करने मे सक्षम है। अंकुरित मेथी खाने से मोटापा, कब्ज, हाई ब्लड प्रेशर एवं थायराइड जैसी तमाम बीमारियो से निजात पाया जा सकता है।
भारत मे मेथी की खेती: मेथी की खेती मुख्यत रवी मौसम मे की जाती है, लेकिन दक्षिण भारत मे इसकी खेती बारिश के मौसम मे भी की जाती है। भारत मे लगभग 80% से ज्यादा मेथी का उत्पादन राजस्थान मे होता है। मेथी का उपयोग सब्जी, औषधिय निर्माण, सौंदर्य प्रसाधन आदि मे किया जाता है। मेथी की फसल से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए उन्नत किस्में जैसे हिसार मुक्ता, हिसार सुवर्णा, एएफजी-1,2,3, राजेंद्र क्रांति, पूसा कसूरी के बीजो को 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से दोमट अथवा बलुई मिट्टी को समतल क्यारियां बनाकर बोना चाहिए। मेथी की अच्छी पैदावार हेतु बोआई से तकरीबन 3 हफ्ते पहले एक हेक्टेयर खेत मे लगभग 10 से 15 टन गोबर की खाद डाल देना चाहिए वही सामान्य उर्वरता वाली भूमि मे प्रति हेक्टेयर 25-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20-25 किलोग्राम फास्फोरस, तथा 15-20 किलोग्राम पोटाश डालना चाहिए। वैज्ञानिको के अनुसार पौध से पौध की दूरी 4-5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बोआई के समय खेत मे नमी होना चाहिए ताकि सही अंकुरण हो सके। मेथी के पौधो मे 4-6 पत्तियां आने पर पहली सिंचाई करनी चाहिए। सर्दी के दिनो मे दो सिंचाईयो का अंतर 15-25 दिन एवं गर्मी मे 5-10 दिन का अंतर जरूरी है। वैज्ञानिक तरीके से कृषको द्वारा मेथी की खेती से अच्छी आजीविका प्राप्त किया जा सकता है।