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शिव महापुराण की कथा बैकुंठ पहुंचाने का सबसे बड़ा माध्यम हैः नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

शिव महापुराण की कथा बैकुंठ पहुंचाने का सबसे बड़ा माध्यम हैः नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
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जयहरीखाल। सत्संग, भजन, कीर्तन, कथा, शिव महापुराण, प्रवचन ही बैकुंठ का स्वरूप है। हम जब प्रवचन, ध्यान और जप-तप में रहते है, वही हमारा सबसे अच्छा पल रहता है। महापुराण की कथा बैकुंठ पहुंचाने का सबसे बड़ा माध्यम है। किसी ने भी बैकुंठ नहीं देखा है। हर मनुष्य को चाहिए कि वह संसार की चाहना नहीं रखे। उस परम के प्रति प्रेम और चाहत रखे। जो ऐसा करता है उसे संसार के पीछे भागना नहीं पड़ता है, बल्कि संसार उसके पीछे-पीछे चला आता है। ऐसा व्यक्ति परम धाम की यात्रा आसानी से पूरी कर लेता है।

उक्त विचार शिव शक्ति सेवा समिति जयहरीखाल द्वारा पंचायत भवन परिसर में जारी सात दिवसीय श्री  शिव महापुराण के पांचवें दिवस नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहे। उन्होंने आगे कहा कि इसका श्रवण करने से हमारे 71 पीढ़ी को मोक्ष प्राप्त होता है, अन्य कथाएं तो आपकी सात पीढ़ी को मोक्ष प्रदान करती है, लेकिन बाबा भोले नाथ की यह कथा आपके समस्त संकटों से छुटकारा दिलाती है.

उन्होंने कहा कि शिव पुराण में शिव भक्ति और शिव महिमा का विस्तार से वर्णन है। लगभग सभी पुराणों में शिव को त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति बताया गया है। शिव सहज ही प्रसन्ना हो जाने वाले एवं मनोवांछित फल देने वाले हैं। शिव पुराण में शिव के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से वर्णन है। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संहार का देवता भी माना गया है। शिवोपासना को अत्यन्त सरल माना गया है। अन्य देवताओं की भांति भगवान शिव को सुगंधित पुष्पमालाओं और मीठे पकवानों की आवश्यकता नहीं पड़ती। शिव तो स्वच्छ जल, बिल्व पत्र, कंटीले और न खाए जाने वाले पौधों के फल धूतरा आदि से ही प्रसन्ना हो जाते हैं। शिव को मनोरम वेशभूषा और अलंकारों की आवश्यकता भी नहीं है। वे तो औघड़ बाबा हैं। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघम्बर, चिता की भस्म लगाए एवं हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए वे सारे विश्व को अपनी पदचाप तथा डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं। इसीलिए उन्हें नटराज की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से जीवन और मृत्यु का बोध होता है। शीश पर गंगा और चंद्र जीवन व कला के प्रतीक हैं। शरीर पर चिता की भस्म मृत्यु की प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अन्त में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।इससे पहले आज शिव विवाह की भव्य झाकीं निकाली गई. आज इस अवसर पर राजीव धस्माना, प्रवीण कुकसाल, गोल्डी असवाल, सुरेन्द्र सिंह, गोलू मैंदोला, श्रीमती पूजा, हेमन्ती भटट् एवं बड़ी संख्या में भक्त जन उपस्थित रहे.


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Garhninad Desk

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