टीएचडीसी इंडिया: “पुनर्वास को मांगे पांच सौ करोड़, उपचार को दिया नहीं पांच करोड़”
विक्रम बिष्ट
उत्तराखंड सरकार ने साल के पूर्वार्द्ध में टिहरी बांध प्रभावित 415 परिवारों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार से पैसे मांगे थे।पैसे तो नहीं मिले, केंद्र ने संबंधित एजेंसी टीएचडीसी इंडिया जो कि केंद्र एवम उत्तरप्रदेश सरकार का संयुक्त उपक्रम है, के विनिवेश का निर्णय ले लिया। इससे पूर्व उत्तराखंड सरकार ने ऐसे चिन्हित 1336 परिवारों के पुनर्वास के लिए 523 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने का प्रस्ताव 23 दिसंबर 2011 को केंद्र को भेजा था।
19 अक्टूबर 2011 को आपदा प्रबंधन मंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में प्रभावित परिवारों के पुनर्वास का निर्णय लिया गया था। 16 मई 2012 को कांग्रेस सरकार ने यह प्रस्ताव दोहराया। लेकिन केंद्र और टीएचडीसी ने प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। दरअसल टीएचडीसी इंडिया साफ कर चुकी है कि सभी पात्र विस्थापित परिवारों का पुनर्वास किया जा चुका है। केन्द्र सरकार ने जुलाई 1990 में 2400 मेगावाट की टिहरी एवं कोटेश्वर बाँध परियोजना की सशर्त स्वीकृति टिहरी जल विकास निगम को दी थी। इसमें डूब क्षेत्र के साथ झील किनारे बसे परिवारों का समुचित पुनर्वास करने की अनिवार्य शर्त शामिल थी। चेतावनी दी गई थी कि इस पर साथ-साथ काम होना चाहिए अन्यथा इंजीनीयरिंग कार्य रोक दिए जाएंगे।
बांध निर्माण जैसे- जैसे आगे बढ़ता गया, शर्तों पर अमल का काम पिछड़ता गया।कुछ मामलों में तो सिर्फ कागज़ों पर लिपाई हुई।
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्थान 1985 से टिहरी बांध क्षेत्र में अध्ययन कार्य करता रहा है। संस्थान ने समय-समय पर प्रस्तावित झील की परिधि के अस्थिर ढ़लानों पर सरकार और टिहरी जल विकास निगम (अब टीएचडीसी इंडिया) का ध्यान आकर्षित किया।
टिहरी बांध प्रभावित संघर्ष समिति वर्षों से प्रेमदत्त जुयाल के नेतृत्व में इन ढ़लानों पर स्थित गांवों के पुनर्वास के लिए लड़ती रही है। जुयाल के अनुसार 2007 से 2016 तक विभिन्न समितियों नेप्रभावित क्षेत्र खासकर सांदणा जलवाल गांव, कंगसाली, कठूली और खोला का सर्वे कर शासन को रिपोर्ट भेजी। वर्ष 2010 में झील के बढ़ते जलस्तर के कारण मदन नेगी छेत्र में 32 भवन ध्वस्त हुए और सैकड़ों मकानों में दरारें आ गई ,फिर भी सरकार की ओर से कार्रवाई नहीं हुई।
प्रेमदत्त जुयाल मामले को उच्च न्यायालय भी ले गए। बताते हैं कि सरकार ने कोर्ट में शपथ पत्र दिया कि शेष कार्य अवश्य पूरे कर लिए जाएंगे। टीएचडीसी ने तब भी समस्याओं के वाजिब समाधान के लिए रुचि नहीं दिखाई। विनिवेश की शर्तें क्या हैं यह अभी भी रहस्य बना हुआ है।
28 जनवरी 2006 को उत्तराखंड शासन के मुख्य सचिव एम.रामचंद्रन का केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव को भेजा पत्र इसका एक उदाहरण है।पत्र में कहा गया है कि खोल और कंगसाली के लिए 1 करोड़ 37 लाख और जलवाल गांव के लिए 3 करोड़ 55 लाख रुपये का जलसंग्रहण छेत्र उपचार योजना का प्रस्ताव 24 सितंबर 2005 को केंद्र की स्वीकृति के लिए भेजा गया था। जल भराव इन गांवों को क्षति पहुंचा सकता है। पीडी जुयाल एवं अन्य बनाम भारत सरकार एवं अन्य की याचिका माननीय उत्तरांचल उच्च न्यायालय में लंबित है।पुनर्वास के मुद्दे पर माननीय उच्चतम न्यायालय में याचिका विचाराधीन है। यदि भूगर्भीय सर्वेक्षण संस्थान (जीएसआई) की संस्तुतियों पर समय पर काम नहीं होता तो कानूनी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। पत्र में उपरोक्त योजना को स्वीकृत करने और टीएचडीसी को वांछित धनराशि यथाशीघ्र अवमुक्त करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
कंगसाली के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य मदन चौहान बताते हैं कि पुनर्वास की बात तो दूर है टीएचडीसी ने यहां एक धेला तक खर्च नहीं किया है।
एकता मंच संयोजक आकाश कृशाली का आरोप है कि टीएचडीसी ने टिहरी बांध विस्थापितों एवं प्रभावितों से किए गए वायदे पूरे नहीं किए हैं। अब विनिवेश के फैसले से यह गम्भीर सवाल पैदा हो गया है कि वायदों और समस्याओं की जिम्मेदारी कौन पूरी करेगा। उलटे कम्पनी में कार्यरत कर्मचारियों के भविष्य को लेकर भी संशय बना हुआ है।भविष्य में इसमें रोज़गार के दरवाजे भी बंद हो जाएंगे। वह सवाल करते हैं कि उत्तराखंड सरकार ने विनिवेश के लिए किस आधार पर एनओसी दी है?क्या सरकार की नजर में पुर्नवास,रोजगार सहित सभी मुद्दे हल हो गए हैं?