जोशीमठ: लापरवाही और लालच के खतरे- विक्रम विष्ट
टिहरी गढ़वाल। टिहरी बांध परियोजना से जुड़े वरिष्ठ भूवैज्ञानिक पी. सी. नवानी ने 22 सितम्बर 1990 को टीएचडीसी के अतिरिक्त महाप्रबंधक, डा. वी. चक्रवर्ती को एक पत्र में टिहरी बांध की प्रस्तावित झील की परिध क्षेत्र में भूस्खलन की आशंकाएं जताई थी। उन्होंने खासतौर पर खोला, कंगसाली एवं जलवालगांव का जिक्र किया था। उत्तराखण्ड राज्य बनने के पांच साल बाद मुख्य सचिव ने केन्द्रीय ऊर्जा मंत्रालय से इन गांवों के ट्रीटमेंट के लिए पाँच करोड़ रुपये दिलाने का अनुरोध किया था। इन गांवों में आज तक ट्रीटमेंट का कोई कार्य हुआ है? ग्रामीणों से पूछ सकते हैं।
जोशीमठ आपदा के बाद प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में भू धंसाव की खबरें आ रही हैं। लोगों की आशंकाएं वाजिब हैं। उम्मीदें सरकार से हैं, यह भी सही है।
हिमालय युवा पहाड़ है और यहां की हलचलों से हो रही ऐसी घटनाओं को रोकना मानव और विज्ञान के वश में नहीं है। लेकिन बचाव के जरूरी उपाय मानव त्रासदी को रोक सकते हैं। उपरोक्त एक उदाहरण लापरवाही का एक नमूना है, जोशीमठ इसे झेल रहा है।
टिहरी बांध उत्तराखण्ड की सबसे बड़ी विकास परियोजना है। यह देश को भरपूर लाभ दे रही है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने जुलाई 1990 में सशर्त स्वीकृति दी थी। बांध की सुरक्षा, पुनर्वास, आपदा प्रबंधन वनस्पति एवं जन्तु, जल गुणवत्ता एवं भागीरथी नदी घाटी विकास प्राधिकरण जैसी शर्तें लगाई थी। यह भी स्पष्ट कहा गया था कि ये सभी कार्य परियोजना के इंजीनियरिंग कार्यों के साथ साथ (pari- passu) किए जाएंगे। अन्यथा इंजीनियरिंग कार्य रोक दी जाएंगे।
पुनर्वास और इसको लेकर आंदोलन चर्चाओं में रहे हैं, लेकिन बाकी शर्तों पर क्या हुआ सरकार, समाज और मीडिया ने ध्यान नहीं दिया है। जबकि ये प्रकृति, पर्यावरण, मानव एवं टिकाऊ विकास से संबंधित हैं। परियोजना स्तरीय मॉनिटरिंग समिति की पहली रिपोर्ट इस पर गंभीर सवाल उठाती है।
राज्य सरकार और हमारे हितैषी जनप्रतिनिधियों ने इन बेहद संवेदनशील सवालों “पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी है। किसी त्रासदी का इंतजार है? बेशक आशंकाओं के साथ पुनर्वास के नाम पर नई नई दुकानें खुलने की उम्मीदें भी शोर शराबे का बड़ा कारण हो सकती हैं।
प्रदेश सरकार और जागरुक, लोगों के लिए जोशीमठ बड़ी चुनौती है और आम जनता के लिए एक और गंभीर चुनौती।
पूर्व की चेतावनियों के बाद भी वहां बहुमंजिला इमारतों के साथ साथ बेतहाशा निर्माण कार्य चन्द महीनों में नहीं हुआ। दोषियों की पहचान भी की जानी चाहिए। लालच और लापरवाही के नतीजे बहुत त्रासद हो सकते हैं।