बुधू: वह तो फ़ाइल है लटकती रहेगी
गढ़ निनाद न्यूज़* 12 अगस्त 2020
तो मुखिया जी को पता चल गया है कि ठीक नाक के नीचे फाइलें चक्करघिनी बनी रहती हैं । उनका गुस्सा आसमान पर है। साफ कर दिया है कि फाइलें घुमाते रहने का काम अब नहीं चलेगा। जो काम करना नहीं चाहते वह अपने लिए कहीं और ठिकाना तलाशें।
वह सरकारी दफ्तर ही क्या जहां फाइलें घुमाई न जांय। दफ्तर सरकार का हो या जिले की सरकार का तहसीलदार का या फिर वीडियो साहब का । फाइलें कभी इसलिए लटका दी जाती हैं कि वह सौ टका सही होती हैं, इसके नीचे से एक टका की कमाई की गुंजाइश नहीं होती । कभी इसलिए कि उस में से तेल निकालने की भरपूर संभावना होती है। सौदेबाजी मनमाफिक रहे इसलिए समय लगना जरूरी है । फाइलें दोषियों की गर्दन बचाने और निर्दोष को फंसाने के लिए भी घुमाई जाती हैं।
टिहरी शहर के घंटाघर की फाइल भी वर्षों से लटकी पड़ी है। वहां से ऐतिहासिक घड़ी की चोरी हुई। पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज की है। लेकिन हुआ क्या ? फाइल पुलिस के पास है या पुनर्वास विभाग के पास या न्याय के मंदिर का घंटा नहीं बजा पा रही है न्याय पाने को।
जिस फ़ाइल ने मुखिया जी का ध्यान आकर्षित किया वह जरूर किस्मत वाली होगी। बुद्धू को समझ नहीं आ रहा कि उनको बताया किसने। हमारे खुफिया वाले तो यह बेकार का काम नहीं करते। अच्छे खासे बोलते चलते को देख नहीं पाते हैं। घंटाघर की घड़ी हो या भांग गांजा के तस्करों पर बेकार में नजर डालनी ही क्यों।
बुधू को यह भी समझ नहीं आ रहा कि मुखिया जी काम करने की चाहत न रखने वालों को दूसरा ठिकाना ढूंढने को क्यों कह रहे हैं। वे जिस काम को करते रहते हैं दिल लगाकर करते हैं। इसी चक्कर में फाइलें भटकती, लटकती रहती हैं। कभी कभी गुम भी हो जाती हैं। इसमें उनका क्या दोष। तुलसीदास जी कह गए हैं समरथ को नहिं दोष गुसाईं । अब आप ताव खा गए हैं तो कुछ दिन हड़बड़ी मची रहेगी। फिर फाइलें अपनी अपनी जगह। व्यवस्था पटरी पर। उनको बचाने वाले भी तो हैं, इधर भी उधर भी। अंदर भी बाहर भी । सरकार की कृपा से समरथ बने हैं बने रहेंगे। उनके नकाब उतरने वाले नहीं हैं। उत्तराखंड की महान भोली-भाली जनता थोड़ा थोड़ा दूर रहकर मास्क पहने स्वस्थ प्रसन्न रहे । शुभकामनाओं के साथ
आपका बुधू।