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केंद्र सरकार प्रतिशोध की भावना से काम कर रही है-राकेश राणा

केंद्र सरकार प्रतिशोध की भावना से काम कर रही है-राकेश राणा
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नई टिहरी। केंद्र की वर्तमान सरकार द्वारा राजनीतिक प्रतिशोध और द्वेष की भावना से प्रेरित होकर सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग करते हुए विपक्षी दल के नेताओं का उत्पीड़न किया जा रहा है जिसकी कांग्रेस पार्टी घोर निंदा करती है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (इडी) की कार्रवाई इसी बात का द्योतक है।

बता दें कि नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र की स्थापना पं. जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, श्री पुरुषोत्तम टंडन, आचार्य नरेंद्र देव, श्री रफी अहमद किदवई और अन्य नेताओं द्वारा वर्ष 1937 में की गई, ताकि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नामक कंपनी को स्थापित करके देश में स्वतंत्रता आंदोलन को आवाज दी जा सके । 1942 से 1945 तक अंग्रेजों द्वारा “भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस समाचार पत्र को प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिसे महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक त्रासदी के रूप में वर्णित किया था। इस समाचार पत्र की संपादकीय उत्कृष्टता के बावजूद, नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र निरंतर आर्थिक रूप से घाटे में जाता गया, जिसके परिणाम स्वरूप इसके द्वारा देय बकाया राशि 90 करोड़ रुपए तक पहुंच गई। इस संकट में फंसे नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र की सहायता के लिए कांग्रेस पार्टी ने वर्ष 2002 से लेकर 2011 के दौरान लगभग 100 किस्तों में इसे 90 करोड़ रुपये का ऋण दिया। इसमें महत्वपूर्ण ध्यान देने वाली बात यह है कि इस 90 करोड़ रुपए की राशि में से नेशनल हेराल्ड ने 67 करोड रुपए अपने कर्मचारियों के वेतन और वीआरएस का भुगतान करने के लिए उपयोग किए और बाकी की राशि बिजली शुल्क, गृहकर, किरायेदारी शुल्क और भवन व्यय आदि जैसी सरकारी देनदारियों के भुगतान के लिए इस्तेमाल की गई। बीजेपी में बैठे लोग और उनके हितैषी, जो कि नेशनल हेराल्ड को दिए गए इस 90 करोड़ रुपये के ऋण को अपराधिक कृत्य के रूप में मान रहे है. ऐसा वह विवेकहीनता और दर्भावना से अभिप्रेत होकर कह रहे हैं। यह सर्वथा अस्वीकार्य है।

बता दें कि  किसी भी राजनीतिक दल द्वारा ऋण देना भारत में किसी भी कानून के तहत एक आपराधिक कृत्य नहीं है। फिर, कांग्रेस पार्टी द्वारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (1937 से कांग्रेस पार्टी से निकटता से जुड़ी और कांग्रेस की विचारधारा का समर्थन करने वाली कंपनी) को समय- समय परकुल 90 करोड़ रुपये का ऋण देना कैसे एक आपराधिक कृत्य माना जा सकता है?  चुनाव आयोग ने दिनांक 06.11.2012 के अपने एक पत्र के माध्यम से सुब्रमण्यम स्वामी को यह स्पष्ट करते हुए लिखा था कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खर्च को प्रतिबंधित या नियंत्रित करता हो। इस प्रकार, स्वामी व भाजपा द्वारा लगाया गया आपराधिक कृत्य का आरोप स्पष्ट रूप से असत्य है।

नेशनल हेराल्ड को दिया गया यह 90 करोड़ रुपए का ऋण नेशनल हेराल्ड और उसकी मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड द्वारा चुकाना संभव नहीं था। इसलिए, इस 90 करोड़ रुपए के ऋण को एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के इक्विटी शेयरों में परिवर्तित कर दिया गया था। चूंकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इक्विटी शेयरों का स्थानित्य अपने पास नहीं रख सकती थी, इसलिए इस इक्विटी को सेक्शन-25 के अंतर्गत स्थापित ‘यंग इंडियन नामक नॉट-फॉर प्रॉफिट कंपनी को आवंटित कर दिया गया। श्रीमती सोनिया गांधी, श्री राहुल गांधी, स्वर्गीय श्री ऑस्कर फर्नांडीस, स्वर्गीय श्री मोती लाल वोरा, श्री सुमन दबे आदि इस ‘नॉट-फॉर प्रॉफिट’ कंपनी की प्रबंध समिति के सदस्य हैं। नॉट-फॉर प्रॉफिट की अवधारणा पर स्थापित किसी भी कंपनी के शेयर धारक प्रबंध समिति के सदस्य कानूनी रूप से कोई लाभांश, लाभ, वेतन या अन्य वित्तीय लाभ नहीं ले सकते हैं। इसलिए, श्रीमती सोनिया गांधी, श्री राहुल गांधी या यंग इंडियन में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी भी प्राप्ति या वित्तीय लाभ का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए स्वामी, भाजपा का अवैध प्राप्ति या लाभ या वित्तीय अर्जन का दावा स्वाभाविक रूप से असत्य है।

नेशनल हेराल्ड की समग्र आय और सभी संपत्तियां एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की अनन्य संपत्ति बनी हुई हैं । कारण बहुत सरल है। संपत्ति का स्वामित्व कंपनी, यानी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के पास है, किसी शेयर धारक के पास नहीं। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की किसी भी चल या अचल संपत्ति को किसी ने भी स्थानांतरित नहीं किया है और न ही यंग इंडियन ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड से एक भी रुपया निकाला है। भले ही यंग इंडियन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड का नियंत्रित करता है (क्योंकि उसके पास इसके 99 प्रतिशत शेयर हैं). यह अपने प्रबंध समिति के किसी भी सदस्य को एक भी रुपया नहीं दे सकता क्योंकि यह एक नॉट-फॉर प्रॉफिट कंपनी है। भले ही अगर प्रबंधन समिति के सदस्यों द्वारा ‘यंग इंडियन’ कंपनी का परिसमापन / बंद कर दिया जाता है, तो भी इससे प्राप्त सकल आय के वल नॉट-फॉर प्रॉफिट कंपनी को ही जा सकती है और कानूनी रूप से इसे शेयर धारकों प्रबंध समिति के सदस्यों के बीच वितरित नहीं किया जा सकता है। 


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Govind Pundir

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