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मजदूर की आत्मकथा

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1 मई – मजदूर दिवस पर समर्पित 

“मजदूर की आत्मकथा”

कवयित्री  – नीलम डिमरी

पूर्व छात्रा नवोदय विद्यालय

मैं एक मजदूर हूँ
पर मजबूर नहीं हूँ,
सबके करीब पर
अपनों से दूर हूँ।।

हर रोज कोल्हू का बैल बन,
गोल-गोल घूम मैं,
अन्न का तेल उगाता हूँ,
हरी-भरी हरियाली से रोज
सुख की आस लगाता हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ,
पर मैं मजबूर नहीं हूँ।।

खेत-खलिहान में झुलसाया हूँ,
युगों-युगों से इस धरा को,
हरियाली से सजाया हूँ।
पर कभी बारिश का कहर,
कभी तूफान का डर,
यही संशय मन में बैठ समाया हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ,
पर मैं मजबूर नहीं हूँ।।

कभी उफनती बाढ़ को मैंने,
घरौंदे उजड़ते देखा है,
हाँ इन बेबस आँखों ने,
लू के थपेडो़ं से,
धरा को बंजर होते देखा है।
आमदनी तो कुछ नहीं साहब,
पर तिल-तिल दानों के लिए,
इक गरीब को मरते देखा है।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ,
पर मैं मजबूर नहीं हूँ।।

मैं तो सिरफिरा हूँ,
इसलिए हल चलाता हूँ,
मदमस्त अपनी चाल में,
दुनिया के लिए अन्न उगाता हूँ।
थका हुआ मैं दिनभर जब,
घर की बाट लगाता हूँ,
फावडा़, हथौड़ा बनकर मैं,
हर आशियां की नींव बनाता हूँ।
क्योंकि मैं मजदूर हूँ,
पर मैं मजबूर नहीं हूँ।।

खुले आसमां के नीचे मुझको,
कई मुसीबतें सताती हैं,
पर मैं कठोर बन ढाल खडा़,
मौसम बवंडर सा आजमाती हैं,
धीरे-धीरे दुख के बादल हठ,
तब चैन की नींद आ जाती है,
क्योंकि मैं मजदूर हूँ,
पर मैं मजबूर नहीं हूँ।।

नीलम डिमरी
ग्राम – देवलधार
गोपेश्वर
जिला – चमोली
उत्तराखंड


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