आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान सम्पदा पर अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का शुभारंभ
भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक दृष्टि, धर्म एवं कर्म का विलक्षण समन्वय है- प्रो0 एन0के0 जोशी
ऋषिकेश 11 जून। श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय परिसर, ऋषिकेश में “आधुनिक परिदृश्य में भारतीय प्राच्य ज्ञान सम्पदा” विषय पर दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का भव्य शुभारंभ किया गया। इस संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र द्वारा किया गया।
सेमिनार का उद्घाटन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एन.के. जोशी, मुख्य अतिथि प्रो. वी.एस. राजपूत, विशिष्ट अतिथि प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री, की-नोट स्पीकर केन कोसीबा (यू.एस.ए.), परिसर निदेशक प्रो. महाबीर सिंह रावत, संकाय विकास केन्द्र की निदेशक प्रो. अनिता तोमर, और भारतीय ज्ञान परंपरा केन्द्र की निदेशक प्रो. कल्पना पंत द्वारा किया गया।
प्रो. एन.के. जोशी ने अपने उद्घाटन भाषण में भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित ज्ञान और विज्ञान, लौकिक और पारलौकिक दृष्टि, धर्म और कर्म के अद्वितीय समन्वय को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान परंपरा को शिक्षा के केंद्रीय आधार के रूप में स्वीकार किया गया है।
मुख्य अतिथि प्रो. वी.एस. राजपूत ने प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के बीच गहरे संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने उपनिषदों में निहित जीवन के आदर्शों और प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों का उल्लेख किया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री ने भारतीय संस्कृति और उसके वैज्ञानिक मूल्यों की सराहना करते हुए कहा कि भारत ने विभिन्न मानव कल्याणकारी क्षेत्रों में अद्वितीय योगदान दिया है।
की-नोट स्पीकर केन कोसीबा ने भारतीय ज्ञान परंपरा की प्राचीनता और इसके आधुनिक विज्ञान में उपयोगी खजाने की सराहना की। उन्होंने भारतीय संस्कृति को वेद, तंत्र, और योग की त्रिवेणी बताया।
सेमिनार के दौरान, श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय और उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के मध्य शोध और शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए।
संगोष्ठी में चार तकनीकी सत्रों में 228 प्रतिभागियों ने भाग लिया। विभिन्न सत्रों में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद, गणित, पर्यावरण, कृषि, अर्थशास्त्र, और अन्य विषयों पर विस्तृत विचार-विमर्श हुआ। सेमिनार का मंच संचालन प्रो. पूनम पाठक द्वारा किया गया।