अपनी आवश्यकताओं को सीमित करें- नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

अपनी आवश्यकताओं को सीमित करें- नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
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देववृंद ( सहारनपुर ) । बारात घर डांडी थामना रोड रणखण्डी में चल रही भागवत कथा के तीसरे दिन व्यासपीठ पर विराजमान नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि  आकांक्षाओं की पूर्ति में निस्संदेह सुख और संतोष है। इस उपलब्धि को पाकर मनुष्य को आनंद एवं उल्लास की उपलब्धि होती है। हर कोई इस स्थिति को प्राप्त करना चाहता है पर न जाने क्यों वह तथ्य भुला दिया जाता है कि इस वरदान को प्राप्त करने के लिए अनवरत एवं कष्टसाध्य साधना करनी पड़ती है।

उन्होंने कहा कि मन की प्रसन्नता का केंद्र इस पहली मंजिल पर ही नियोजित करना पड़ता है। अभीष्ट प्रयोजन के लिए, साधन जुटाने के लिए अपनी क्षमता, योग्यता का बढ़ाना एवं  आवश्यक साधनों का जुटाना अनिवार्य है। इन दोनों उपलब्धियों के लिए किए जाने वाले प्रयास को इतना सुखद मान लिया जाना चाहिए मानो वही सफलता का अंतिम बिंदु हो । सुखद सत्परिणाम के उपभोग जितना रस यदि प्रगति पथ पर चलने के साधन जुटाने एवं काँटे बीनने में जाने लगे तो ही समझना चाहिए कि सफलता का आधार सुनिश्चित बन गया।

अभीष्ट लक्ष्य की पूर्ति में देर लगाना और अनेकानेक अवरोध उत्पन्न होना नितांत संभव है। मनस्वी व्यक्ति धैर्य, साहस, पुरुषार्थ और संतुलन का आश्रय लेकर इस कठिन मार्ग को पार करते हैं किंतु उथले और अधीर मनुष्य जरा-सा विलंब होते ही, जरा-सी अड़चन आते ही सकपका जाते हैं और निराशा के गर्त में गिरकर असफलता की घोषणा कर देते हैं। इन बालबुद्धि लोगों को यह समझना चाहिए और समझाया जाना चाहिए कि सफलता के प्रतिफल खजूर जैसे ऊँचे वृक्ष पर ही लगते हैं। उन्हें पाने के लिए जोखिम भरी ऊँचाई तक चढ़ने के लिए घोर साहसिकता का परिचय देना पड़ता है। जो इतना मूल्य नहीं चुका सकते, उन्हें किन्हीं बड़ी उपलब्धियों की आशा नहीं करनी चाहिए। तुरत-फुरत इच्छापूर्ति के सपने तो केवल बालबुद्धि को ही शोभा देते हैं। संसार के प्रगतिशील मनुष्यों को अविचल धैर्य के साथ अनवरत पुरुषार्थ करने की प्रक्रिया को अत्यंत सरस मानकर चलना पड़ा है। वे अपनी पुरुषार्थ-परायणता को – संघर्षनिष्ठा को इतना मधुर मानते रहे हैं कि हजार वर्ष तक अंतिम सफलता के लिए प्रतीक्षा करना भी भारी न पड़े।

अनेकानेक अभिलाषाएँ करना और उनकी पूर्ति के समय मिलने वाले आनंद की कल्पना करना मनोविनोद की दृष्टि से अच्छा है, पर उसमें खीझ और निराशा की प्रतिक्रिया भी पूरी तरह जुड़ी हुई है। जिन्हें मधुर कल्पना और दुःखद निराशा के ज्वार-भाटे में उछलना गिरना अच्छा लगता हो; वे प्रसन्नतापूर्वक उस बाल-विनोद में लगे रहें, पर जिन्हें कुछ पाना है, उन्हें आकांक्षाओं को नियंत्रित परिष्कृत करने का प्रथम चरण बढ़ाकर दूसरा कदम यह रखना चाहिए कि निर्धारित लक्ष्य के लिए आवश्यक क्षमता एवं साधन जुटाने में इतने धैर्य एवं उत्साह के साथ संलग्न होंगे कि वे प्रयास ही सफलता के जितने आनंददायक प्रतीत होने लगें। आज इस अवसर पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान, उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री धर्मवीर प्रजापति ने कथा में पंहुचकर व्यासपीठ का आशीर्वाद लिया। इससे पूर्व कथा आयोजन समिति के अध्यक्ष पूर्व ब्लॉक प्रमुख ठाकुर अनिल सिंह पुंडीर ने अपनी पूरी टीम के साथ आए हुए अतिथियों का फूल माला पहनाकर स्वागत किया। 


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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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