हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे
01 मई “अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस” पर विशेष
गोविंद पुण्डीर
नई टिहरी, 01 मई 2020। “अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस” पर देश-दुनिया के सभी मजदूर, मेहनतकश, कामगार भाईयों को हार्दिक बधाई।
मजदूर दिवस पर विशेषकर उन लोगों जिन्होंने अपने खून पसीने से देश और दुनिया के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और निभाते आ रहे हैं,रहेंगे साधुवाद। किसी भी देश, समाज, संस्था और उद्योग में मजदूरों, कामगारों और मेहनतकशों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों और कामगारों की मेहनत और लगन की बदौलत ही आज दुनिया भर के देश हर क्षेत्र में विकास कर रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि कोरोना संक्रमण के चलते जो भी हमारे प्रवासी भाई देश-विदेश जहां भी हैं, जैसे भी हैं उन्हें उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने का प्रयास करें।
आप जानते होंगे कि अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस की शुरुआत 01 मई 1886 को हुई, जब अमेरिका में कई मजदूर यूनियन ने काम का समय 8 घंटे से ज्यादा न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम धमाका हुआ था। बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं चला था,लेकिन प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दी और कई मजदूर मारे गए।
शिकागो की इस घटना में शहीद मजदूरों की याद में पहली बार मजदूर दिवस मनाया गया। इसके बाद पेरिस में 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नरसंघार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को “अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस” के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा। तब से ही भारत समेत दुनिया के करीब 80 देशों में मजदूर दिवस को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाया जाने लगा। भारत में मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 को हुई थी।
मई दिवस पर मुझे मशहूर शायर फैज अहमद फैज की वे पंक्तियां जो उन्होंने ‘मजदूर’ फिल्म के लिए लिखी थी बहुत प्रासंगिक लगती हैं–
हम मेहनतकश, जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।
यहां पर्वत-पर्वत हीरे हैं, यहां सागर-सागर मोती हैं,
ये सारा माल हमारा है, हम सारा खजाना मांगेंगे।
जब सब सीधा हो जाएगा, जब सब झगडे मिट जाएंगे,
हम मेहनत से उपजाएंगे, बस बांट बराबर खाएंगे।
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।
आज पूरा विश्व कोरोना जैसे वैश्विक बीमारी से ग्रसित है। देश के आम-खास, मेहनतकश,मजदूर, कामगार सभी एकजुट हो कर इस महामारी का मुकाबला कर रहे हैं। इस महामारी का सर्वाधिक दुष्प्रभाव संगठित, असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, गरीबों, समाज के निचले पायदान पर खड़े लोगों पर पड़ रहा हैं। जो अपने घर-गांवों से बहुत दूर रोजी–रोटी कमाने के लिये निकले हैं, और आज अपने घरों को लौटने के लिये बेताब हैं।
शासन-प्रशासन सरकार की लचर कार्यशैली के चलते घर जाने को बेताब ये लोग सडको पर सिर पर बोझा गोद में दुधमुंहे बच्चों को लेकर निकल पड़े हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने कल ही ऐसे प्रवासियों की घर वापसी को आदेश जारी किए हैं। राज्य सरकारों को आपसी समन्वय स्थापित करने को कहा है। सरकारों को इन करोड़ो लोगों की चिंता करनी चाहिए, उन्हें मानवीय गरिमा के साथ जीने की बुनियादी सुविधाएं, भोजन, घर, पानी जीवन यापन के लिए जरूरी व्यवस्थाएँ करनी चाहिए।