*अतीत की खिड़की से*
ग्यारह गांव हिंदाव का वन आंदोलन
विक्रम बिष्ट
फरवरी 1986 में टिहरी गढ़वाल के ग्यारह गांव हिंदाव के लोगों ने वन संरक्षण अधिनियम 1980 के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। ग्रामीण ढोल-बाजों के साथ महीनों जिला कोर्ट, परिषद के बीच खाली मैदान में डटे रहे थे। यह आंदोलन भी राज्य के संघर्ष के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।
80 के दशक में वन संरक्षण अधिनियम ने पहाड़ के मंथर विकास का चक्का जाम कर दिया था। घनसाली-अखोड़ी की वर्षों पुरानी स्वीकृत सड़क का काम ठप पड़ा था। जनवरी के आखिरी सप्ताह में मंत्री प्रसाद नैथानी ने टिहरी में इसकी चर्चा की। आंदोलन की तैयारी के लिए ग्यारह गांव हिंदाव चलने को कहा। हम दो-तीन दिन वहां घूमे। क्षेत्र के प्रतिष्ठित सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता गोबरु शाह जी से पहली बार हुलानाखल में मुलाकात हुई । बर्फीले, जंगली रास्तों को पार कर हमारे जन जागरण अभियान का जखोली के पूर्व प्रमुख पूर्णानन्द भट्ट जी के घर पर समापन हुआ। लाखीराम तिवारी, सुरेंद्र सिंह पंवार, सुंदर सिंह, भूप सिंह, देवेश्वर जोशी आदि ग्राम प्रधान और सामाजिक कार्यकर्ता अग्रणी भूमिका में रहे थे ।
जब आंदोलन का शासन प्रशासन पर असर नहीं हुआ तो तय हुआ कि इंद्रमणि बडोनी जी को आमंत्रित कर इसकी बागडोर सौंपी जाए। बडोनी जी ने तब तक सक्रिय राजनीति से हटकर सामाजिक कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर दिया था। बड़ोनी जी आए तो आंदोलन का विस्तार हुआ। इसमें भाजपा के रामानंद बधानी से लेकर कामरेड़ कमला राम नौटियाल, दिवाकर भट्ट सहित कई जुझारू नेता जुड़ गए। बड़ोनी जी की वापसी हुई। इस आंदोलन का समापन उत्तराखंड क्रांतिदल के पुनर्जागरण के रूप में हुआ । बड़ोनी जी के मार्गदर्शन में चंद महीनों बाद एक मात्र लक्ष्य -उत्तराखंड राज्य- के लिए नया संघर्ष शुरू कर दिया।