अलविदा त्रेपन चौहान
“संघर्ष के दिनों का एक और साथी”
विक्रम बिष्ट*
उत्तराखंड आन्दोलन और जन संघर्षों का एक और साथी त्रेपन चौहान भी असमय इस दुनिया से विदा हो गया। लक्ष्मण राणा उम्र में कुछ बड़े, धूम सिंह, त्रेपन छोटे थे। त्रेपन चौहान सबसे कम उम्र में यूकेडी से जुड़ गया था। उस पर पूरा भरोसा रहता था।
1987 में राज्य की मांग को लेकर यूकेडी ने जिला स्तर पर रैलियाँ आयोजित की थीं। त्रेपन सिंह हमारी केपार्स ग्राम सभा के प्रधान भगवती प्रसाद नौटियाल सहित लगभग दो दर्जन लोगों के साथ टिहरी रेली में पहुंचा था। उस दिन हमको टिहरी मे दो दो रेलियां करनी पड़ी थी। दिन में आजाद मैदान में। दल के अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी समय पर नहीं पहुंच पाये थे। साँय को पुन इन्दिरा चौक पर।
1988-89 में यूकेडी ने वन संरक्षण अधिनियम के खिलाफ पहाड़ में जबरदस्त आंदोलन चलाया था। हमारी सड़क छतियारा-खवाडा का काम भी इस कानून के कारण ठप्प पड़ा था। उसमें चीन के 13 पेड़ बाधक बने थे। उनका उन्मूलन करने के लिए वन विभाग के रिकॉर्ड के हिसाब से लगभग 4 हजार नर-नारियां जुटी थी। त्रेपन की उनको संगठित करने में बड़ी भूमिका रही थी।
19-20 दिसंबर 87 में टिहरी में उत्तराखंड जन परिषद का गठन किया गया। त्रेपन चौहान उसके संस्थापक सदस्यों में एक रहे।वह इंद्रमणि बडोनी जी से घुल मिल गए थे। उनके मुनी की रेती आवास पर आते जाते रहते थे।
बाद में अपना संगठन चेतना आंदोलन खड़ा किया। अपनी बड़ी पहचान बनाई। किताबें लिखी। फलेंडा आंदोलन में जेल गए। एक बार हमें सूझी भगवान को तपस्या कर प्रश्न करने की। हमारे गांव से 5-7 किलोमीटर दूर एक जंगल है। हम दोनों वहां जा पहुंचे। एक बड़े से पेड़ के नीचे बैठ गए। धीरे-धीरे अंधेरा घिरने लगा। कुछ देर बाद एक विशालकाय जानवर ने ऊपर से सन्नाटे को चीरते हुए छलांग लगाई। हमारे सिरों के 10-12 फिट ऊपर से लंबी छलांग। ध्यान भंग हो गया। फिर घर वाले परेशान हो जाएंगे। यह सोचकर हम लौट आये। बुद्धत्व प्राप्त हो गया। यह बात हमने डांट फटकार की डर से किसी को नहीं बताई। तपस्या तो उत्तराखंड के लिए निर्धारित थी। लेकिन इतनी भी क्या जल्दी थी जाने की!