बुधू- फजीता राम खुद फ़जीहत
गढ़ निनाद न्यूज़* 30 सितम्बर 2020।
लोग कहते हैं नाम में क्या धरा है। उदाहरण भी देते हैं आदमी से लेकर फल तक। भीख मांगते लखपत, धनपत और रंगी नारंगी। लेकिन फजीता राम के नाम में सभी कुछ धरा है। वह कहता है आ बैल उसे मार। आवाज़ लौट कर आती है आ बैल मुझे मार। पता नहीं कैसे इसमें अपने आप जुड़ जाता है मेरे गले फंदा डाल। खोची मेरा मतलब खोजी पत्रकारिता की अपनी लंबी चौड़ी यात्रा में बुधू को हर जगह एकाध फजीता राम मिलता रहा है। अपनी तो कराते हैं अपने आसपास वालों की फ़जीयत कराना भी फजीतारामों की जिम्मेदारी होती है।
राजनीति में जड़ से टूखे तक फजीताराम सभी ने देखे होंगे । वह जो कहते हैं असर ठीक उल्टा होता है। उनको अपने गीत गीता जैसे पवित्र लगते हैं , लोगों को हंसी आती है। पप्पू के न पास होने की गारंटी होती है ना फेल होने की। फजीताराम हो या फिर फजीतू। उसकी फ़जीयत तय है। इन प्राणियों की खास किस्म की खुजली होती है शायद। फजीहत कराये बिना तसल्ली नहीं होती।
हमारे देश की राजनीति में एक हैं डिग्गी राजा। जब भी बोलते हैं उनकी पार्टी की फजीहत ही होती है। उनके सबसे बड़े बॉस के भी अक्सर यही हाल हैं। चलो राजनीति में तो मसखराफ़ चल जाता है। सभी जगह नहीं चलता।
अपनी मुंबई में शिव की कलयुगी सेना के फजीतुओं को ही लें। देशभर से लोग जाकर वहां समृद्ध संसार रचते हैं। वह कहते हैं जिस थाली में खाते हैं छेद करते हैं। हरामखोर! वास्तव में कौन ? फजीता राम सरकारी दफ्तरों में हों तो ? क्या-क्या नहीं हो सकता है ? कोरोना काल में आसपास के फजीतुओं से बचे रहें। शुभकामनाओं के साथ आपका- बुधू।