रामपुर तिराहा कांड-अमानवीय साजिश
विक्रम बिष्ट*
गढ़ निनाद न्यूज़* 10 अक्टूबर 2020।
नई टिहरी। एक अक्टूबर 1994 को टिहरी,उत्तरकाशी,श्रीनगर ,चमोली,देहरादून से हजारों लोग दिल्ली रैली में शामिल होने के लिए चले थे। कोटद्वार और कुमाऊं से चले लोग सकुशल दिल्ली पहुंच गए।लेकिन गढवाल मंडल के आंदोलनकारियों के खिलाफ कांग्रेस द्वारा समर्थित सपा-बसपा सरकार ने जो अमानवीय बर्ताव किया वह आजाद भारत के इतिहास का सबसे शर्मनाक कलंक है।
यह साजिशन था। जिसकी पूरी हकीकत आज तक उजागर नहीं होने दी गई है। 1-2 अक्टूबर की दरम्यानी रात को मुजफ्फर नगर के रामपुर तिराहे पर हथियारों की जांच के नाम पर सभी आंदोलनकारियों को यूपी पुलिस ने रोक दिया था। आंदोलनकारी हथियार लेकर दिल्ली जा रहे हैं , यह बात पूरी तरह बेबुनियाद थी। सहारनपुर प्रशासन, पुलिस की प्रदेश सरकार को भेजी रिपोर्ट भी इसका पुष्ट प्रमाण है।
पत्रकार त्रिलोक चंद भट्ट की उत्तराखंड आंदोलन पर लिखी किताब में इसका उदाहरण मौजूद है । सहारनपुर के तत्कालीन डीएम हरभजन सिंह और एसएसपी आर एन श्रीवास्तव के संयुक्त हस्ताक्षर से शासन को भेजी रिपोर्ट एसडटीडी /C-49/94 दिनांक 2 अक्टूबर 1994 ने लिखा बताया है कि रात्री के लगभग 12:00 बजे देहरादून,सहारनपुर सीमा पर स्थित पुलिस चौकी से सूचना मिली है कि लगभग 53 बसें जिनमें तीन साढ़े तीन हजार लोग होंगे। क्न्वाय के रूप में दिल्ली की ओर प्रस्थान कर रहे गये। चेक पोस्ट पर इनको रोका गया। यथासंभव समझाने, बुझाने आदि का प्रयास किया गया। सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी ने परमिटो की जांच की, सभी अभिलेख सही पाए गए। पुलिस ने बसों के अंदर भी शास्त्र आदि की जांच की कोई व्यक्ति शस्त्र लेकर दिल्ली जाते नहीं मिला। रोकने पर भीड़ उग्र हो गयी।। गोली चलाने से स्थिति विस्फोटक हो जाएगी । ऐसी स्थिति में जब दिल्ली प्रशासन से इन व्यक्तियों को रैली करने की अनुमति प्राप्त थी, रोकना पूर्णता अवैधानिक होता। आपस में विचार विमर्श कर स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उपरोक्त बसों को दिल्ली जाने दिया गया।
फिर ऐसा क्या था कि मेरठ परिक्षेत्र के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी आंदोलनकारियों को बल प्रयोग से रोकने की जिद ठाने हुए थे। इतना ही नहीं पुलिस को किसी भी घृणित हद तक जाने की छूट दी गई थी या शायद उकसाया भी गया हो।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए। उत्तर प्रदेश सरकार एवं डरे अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट जाकर जांच रुकवाने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने जांच रोकने से इंकार कर दिया। अदालत ने केंद्र सरकार से भी जवाब तलब किए। मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह को व्यक्तिगत रुप से प्रतिवादी बनाने का निर्देश दिया।
—क्रमश