समाज कल्याण-तीन: यह तो सिर्फ लक्षण है
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद न्यूज़ *17अक्टूबर 2020
नई टिहरी। राज्य बनने के साथ उत्तराखंड के शहीदों के सपनों को साकार करने का जिम्मा वयोवृद्ध नित्यानंद स्वामी को सौंपा गया । स्वामी जी ने तत्परता से अस्थाई राजधानी और स्थाई निवास के कलह का बीजारोपण कर दिया। तराई के भू-खोर और अकाली खुश रहें, इसलिए राज्य पुनर्गठन अधिनियम से लेकर राजभवन तक चाक-चौबंद व्यवस्था कर दी गयी । उत्तराखंड की भावी पीढ़ियां मां गंगा, यमुना, काली, सरयू के पानी के लिए आधा दर्जन प्रांतों और केंद्र की सरकारों के सामने गिडगिडाती रहें, इसका भी पुख्ता प्रबंध है।
कांग्रेस भला क्यों पीछे रहती। जीते जी उत्तराखंड राज्य न बनने देने की बात करने वाले नारायण दत्त तिवाड़ी को जागीर दान दे दी। तिवारी जी आए और उपजागीरदारी का पिटारा खोल दिया। शहीदों के सपनों को साकार करने को तड़पते होनहारों को सरकारी चारे के साथ लाल-लाल कलगियां लगाकर मस्त-मस्त डांस के लिए छोड़ दिया। लेकिन जो नहीं किया वह यह कि नवोदित प्रदेश के अनुकूल नीतियां नहीं बनायी। बड़ा बजट हासिल करके जय कारे प्राप्त करना आसान है। उसका सदुपयोग उतना ही कठिन है। खुद्दार और लोक को समर्पित मुख्यमंत्री यशवंत परमार ने हिमाचल प्रदेश की ठोस बुनियाद रखी। हमारा पड़ोसी जिस मुकाम पर आज है वहां पहुंचना अब कल्पना से परे है। भुरभुरी व भ्रष्ट कर दी गई जमीन पर खुशहाली की फसल उगाने के लिए क्रांति का जिगरा चाहिए। अन्यथा समाज कल्याण का काम इसी तरह चलता रहेगा। बल्कि ज्यादा खतरनाक ढंग से। वर्तमान तो सिर्फ लक्षण है।