बुधू : टिहरी की ऐतिहासिक विरासत: मुकदमा संख्या 333/4 लापता
गढ़ निनाद समाचार।
तपोवन त्रासदी के बीच उत्तराखंड सरकार ने धैर्य नहीं खोया। सरकार टिहरी पहुंची, इसको विश्व स्तरीय पर्यटन केंद्र बनाने का संकल्प दोहराने। बुधू को सब्र नहीं हुआ और किसी को भी नजर ना आने वाले त्रिलोकगामी प्लेन से सीधे टिहरी पहुंच गया।
देखा तो मन भर आया। भविष्य के साथ सरकार टिहरी की ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए भी समर्पित है। उधर कुर्सी बदर पत्रकार बिरादरी के बीच घुस गया। ज्ञान प्राप्त करने के लिए उससे अधिक उत्तम जगह और अवसर क्या हो सकता था। खुसुर-फुसुर में पता चला कि टिहरी की कई धरोहरें उसके डूबने से पहले ही ग़ायब कर दी गई थीं। सरकारी फाइलों में डुबा दी गई। बुधू के अंदर का खोजी पत्रकार जागा। बिना आवाज़ प्लेन स्टार्ट किया और सीधे झील में डुबकी लगा दी।
एक लोहे के पुल के बीच से घुस कर बुधू का प्लेन आगे पहुंचा तो वहां घंटाघर लुढ़का हुआ मिला। चारों तरफ और ऊपर नीचे टटोला पर घड़ी नहीं मिली। पहले ही पता कर लिया था कि घड़ी थी बहुत बड़ी। पानी में गलने वाली चीज नहीं थी। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज की हीरक जयंती की स्मृति में बने घंटाघर का प्राण थी। ऐसे कैसे गायब हो सकती है? इंग्लैंड, अमेरिका के लोग तो अपने सेलिब्रिटी की चप्पलें तक लाखों पौंड, डॉलरों में खरीद लेते हैं। महारानी से जुड़ी घड़ी तो करोड़ों की होगी।
बुधू अपने अदृश्य प्लेन से नई टिहरी, देहरादून, ऋषिकेश हरिद्वार जहां जहां टिहरी के विस्थापित बसाये गये घूम आया। आखिर एक दाने सयाने विस्थापित से पता चला कि पुनर्वास की छत्रछाया में घड़ी चुरा ली गई थी,नहीं चुरवा ली गई थी। कुछ पत्रकारों ने मामले पर प्रकाश डाला तो पुर्नवास विभाग ने पुलिस में शिकायत दर्ज की। जांच हुई तो हरि नगरी के किसी सज्जन के नाम रिपोर्ट दर्ज की गई। उस सज्जन को गिरफ्तारी पर स्टे लेने का मौका दिया गया। ताकि घड़ी की
बरामदगी की झंझट से मुक्ति मिल जाए। जांच के बाद केस कोर्ट में दाखिल किया गया। फिर न्यायिक प्रक्रिया पर अंतहीन स्टे मिल गया। बुधू को पूरे भारत के न्यायिक इतिहास की कोई ऐसी दूसरी विरासत की खोज करनी है। इंतजार कीजिए।
आप का बुधू।
(इसी खोजबीन में दो दिन लेट हो गया माफ़ करना)