” खाक हो रहे जलकर जंगल “
बाल गीत
कैसे होगा जग का मंगल ,
खाक हो रहे जलकर जंगल !
जड़ी – बूटियाँ हो गई राख ,
चिकित्सा में थी जिनकी धाक ।
फल-फूल घास-पात की डाली ,
कितनी सुन्दर थी ओ पाली !
मेहनत से जो पौध उगाई ,
आग की भेंट चढ़ी वह भाई !
जीव-जन्तु भी बच नहीं पाते ,
कुछ अपंग बन जीवन बिताते ।
आग को लगाने वाला कौन ,
पूछो जब सब होते मौन ।
हम सबके बीच रहता खड़ा ,
होता ढीठ वह बहुत बड़ा ।
पेड़ – पौधे जो धरती के श्रृंगार ,
जलकर हो रहे सब अंगार !
जल के श्रोत सब सूखकर नष्ट ,
यह सब देखकर होता कष्ट ।
इस काम के अपराधी जो ,
कठोर सजा का अधिकारी ओ ।