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प्रशंसा के फूल हर कोई नहीं पचा सकता — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

प्रशंसा के फूल हर कोई नहीं पचा सकता — नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
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हरिद्वार। श्रावण शिवरात्रि के विश्राम सत्र में वर्चुअल प्रवचन करते हुए नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि हमारे नाम के आगे कोई उपाधि लगे , कोई विशेषण लगे हम इस भावना से मुक्त हो जाएं । नाम के साथ उपाधि लगते ही मोहग्रस्त हो जाना , कोई दोष आ जाना स्वाभाविक ही है । 

माता सीता जी की खोज कर जब श्री हनुमान जी लौटे तो श्रीराम जी ने उनकी प्रशंसा की । श्री हनुमान जी ने नजरें नीची करते हुए कहा कि हे प्रभु इतना डर लंका के राक्षसों से नहीं लगा , मगर आप मेरी प्रशंसा कर रहें हैं तो डर लग रहा कि कहीं मुझमें अहंकार न आ जाए । प्रशंसा के फूल हर कोई नहीं पचा सकता। हमें इस बात का ध्यान रखना है कि समाज अगर हमारे नाम के आगे कोई विशेषण  लगाता है तो हमारी योग्यता का प्रमाण नहीं है । वह तो समाज की हम से अपेक्षा है कि वह हमें इस रुप में देखना चाहता है । यदि लोग हमें परम पूज्य कहने लगें तो इसका मतलब यह नहीं कि हम सचमुच में परम पूज्य हैं इसका मतलब है कि लोग हमसे यह अपेक्षा करते हैं कि हम परम पूज्य बनें ।

आध्यात्मिकता स्वयं के रूपांतरण के लिए है। आध्यात्मिक प्रक्रिया उनके लिए है जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहते हैं। आध्यात्मिक होने का अर्थ है – जो भौतिक से परे है, उसका अनुभव कर पाना। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको बोध है कि आपके दु:ख, आपके क्रोध, आपके क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है, बल्कि आप स्वयं इनके निर्माता हैं, तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। आप जो भी कार्य करते हैं, यदि उसमें केवल आपका हित न हो कर, सभी की भलाई निहित है, तो आप आध्यात्मिक हैं। यदि आप अपने अहंकार, क्रोध, नाराजगी, लालच, ईर्ष्या, और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। 

बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों, उनके बाद भी यदि आप अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनन्द में रहते हैं, तो आप आध्यात्मिक हैं। यदि आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने स्वयं के नगण्य और क्षुद्र होने का एहसास बना रहता है तो आप आध्यात्मिक हैं। आपके पास अभी जो कुछ भी है, उसके लिए यदि आप सृष्टि या किसी परम सत्ता के प्रति कृतज्ञता अनुभव करते हैं तो आप आध्यात्मिकता की ओर बढ़ रहे हैं। यदि आपमें केवल स्वजनों के प्रति ही नहीं, बल्कि सभी लोगों के लिए प्रेम उमड़ता है, तो आप आध्यात्मिक हैं। अतः आपके अंदर यदि सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है, तो आप आध्यात्मिक हैं।


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Govind Pundir

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