श्राद्ध पक्ष में मातृ नवमी का बड़ा महत्व – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
रायवाला। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार के परमाध्यक्ष स्वामी रसिक महाराज के अनुसार पितृ पक्ष की नवमी तिथि पर मृत माताओं, सुहागिन स्त्रियों और अज्ञात महिलाओं के श्राद्ध का विधान बताया गया है। इस तिथि को मातृ नवमी तिथि के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस तिथि में यदि मृत महिलाओं का श्राद्ध विधि विधान से करने के साथ तर्पण भी किया जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
पितृ पक्ष की नवमी तिथि पर माताओं और सुहागिन स्त्रियों के श्राद्ध और तर्पण का विधान है। मातृ नवमी (मातृ नवमी का महत्त्व ) का पूजन मुख्य रूप से अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को किया जाता है। इस साल आश्विन मास की नवमी तिथि 29 सितंबर, बुधवार को रात्रि 8 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर 30 सितंबर को रात्रि 10 बजकर 08 मिनट तक है। चूंकि उदया तिथि को ध्यान में रखकर पूजन करना शुभ होता है इसलिए मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म 30 सितंबर, गुरुवार के दिन किया जाएगा।
मातृ नवमी में कैसे करें श्राद्ध
मान्यता है कि मातृ नवमी वाले दिन यदि आप किसी मृत पूर्वज महिला का श्राद्ध कर रही हैं तो प्रातः जल्दी उठाकर स्नान आदि करें और दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर साफ़ वस्त्र धारण करें। घर की दक्षिण दिशा में एक चौकी रख कर उस पर सफेद आसन बिछाएं और पूर्वज महिला की तस्वीर इस आसन पर रखें । तस्वीर पर माला, फूल चढ़ाएं और उनके समीप काले तिल का दीपक और धूप बत्ती जला कर रखें। तस्वीर पर गंगा जल और तुलसी दल अर्पित करें और गरुण पुराण, गजेन्द्र मोक्ष और गीता का पाठ करें। पाठ करने के मृत पूर्वज महिला की पसंद का सात्विक भोजन तैयार करें और घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखें।
गाय, कौआ,चींटी,चिड़िया के लिए भोजन निकालने के बाद ब्राह्मणी के लिए भी भोजन अवश्य तैयार करें और श्रद्धा से खिलाएं। गाय के गोबर के उपले से हवन करें और मृत महिला की आत्मा की शांति की प्रार्थना करें। यदि मृत महिला सुहागिन थी तो श्रृंगार का पूरा सामान दान स्वरूप ब्रह्माणी को अर्पित करें। मृत महिला के नाम का दीपक प्रज्जवलित करें और दायें हाथ की हथेली पर पुष्प एवं जल में मिश्री एवं तिल मिलाकर तर्पण करें। इस दिन तुलसी का पूजन भी विशेष रूप से करने का विधान है। संपूर्ण पूजन के पश्चात हाथ जोड़कर जाने-अनजाने में हुई गलतियों की क्षमा प्रार्थना करते हुए मृत महिलाओं को विदा करें और कल्याण की प्रार्थना करें।
उपर्युक्त विधान से मृत पूर्वज महिलाओं एवं दिवंगत माताओं का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और जन कल्याण भी होता है।