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“गौरैया दिवस” पर विशेष * पक्षियों के संरक्षण के लिए समर्पित है “गौरैया दिवस”- भरत गिरी गोसाई

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गढ़ निनाद समाचार *20 मार्च 2021।

नई टिहरी। प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करना है। ‘द नेचर ऑफ सोसाइटी ऑफ इंडियन एनवायरमेंट’ के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने सर्वप्रथम 2008 में गौरैया की संख्या में तेजी से आ रही गिरावट को देखते हुए इसके संरक्षण की पहल की थी, जिसके फलस्वरूप पहला विश्व गौरैया दिवस 2010 में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में मनाया गया। 

विश्व गौरैया दिवस 2021 की थीम है- आई लव स्पैरो। गौरैया पक्षी जिसे आमतौर पर हाउस स्पैरो भी कहा जाता है का वैज्ञानिक नाम पारस डॉमेस्टिकस है, जो कि पासेराडेई परिवार का सदस्य है। इसकी औसतन लंबाई 12 से 18 सेंटीमीटर तथा वजन 25 से 30 ग्राम तक होती है। गौरैया अधिकतर झुंड में रहती है। भोजन की तलाश में यह 2 मील तक की दूरी तय करती है। दुनिया भर में गौरैया की 26 प्रजातियां है, जिसमें से 5 प्रजातियां भारत में पाई जाती है।

आमतौर पर 25 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ने वाली  गौरैया खतरे में 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ने में सक्षम है। नर तथा मादा गोरौया अलग-अलग होती हैं। इनका औसतन जीवनकाल 4 से लेकर 12 साल तक होता है। अपने जीवन काल में यह कम से कम 3 बच्चों को जन्म देने की क्षमता रखती है। घरों के आंगन, छत तथा बगीचों में चीं-चीं की आवाज से फूदकने वाली यह खूबसूरत गौरैया पक्षी जिसे बच्चे बचपन से देखते हुए बड़ा हुआ करते थे, वर्तमान में लगभग विलुप्त सी हो गई है। कुछ वर्ष पूर्व आसानी से दिखने वाली या पक्षी विलुप्ति के कगार में है। 

देश की राजधानी दिल्ली में तो यह पक्षी इस कदर दुर्लभ हो गई है, कि ढूंढने से भी नहीं मिलती है। इसलिए वर्ष 2012 मे दिल्ली सरकार ने गौरैया को अपना राज्य पक्षी घोषित किया। 20 मार्च 2011 को गुजरात सरकार ने गौरैया संरक्षण के कार्य करने वाले समाज सेवको, प्रकृति प्रेमियों को  गौरैया पुरस्कार’ देने की घोषणा की जिसका मकसद ऐसे लोगो की सराहना करना है, जो गौरैया संरक्षण में अपना योगदान दे रहे है।

पर्यावरण संतुलन में गौरैया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अपने नन्हे बच्चों को भोजन के रूप में अल्फा व कैटवार्म नामक कीड़े खिलाती है। ये कीड़े कृषि पादपों के लिए बहुत नुकसानदायक होते है। ये कीड़े फसलों की पत्तियों को नष्ट कर देते है, जिससे फसल उत्पादन मे कमी आती है। आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार भारत में गौरैया की संख्या में करीब 60% तक कमी आई है। रॉयल सोसाइटी ऑफ प्रोटेक्शन ऑफ वर्ड्स (ब्रिटेन) ने अपने अनुसंधान में पाया कि गोरौया, पक्षियों की सबसे संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक है। इसलिए इसे ‘रेड लिस्ट’ में डाला गया, जिसका अर्थ यह है कि विश्व में यह पक्षी पूरी तरह से लुप्त होने के कगार पर है। 

गौरैया पक्षियों की संख्या लगातार घटने के प्रमुख कारण तालाबों, जलाशयों, नदियों के सूखने से प्रवास के दौरान उपयुक्त भोजन तथा पानी न मिलना, कृषि मे अत्यधिक कीटनाशकों का प्रयोग, रहने के लिए प्राकृतिक आवास व स्थान की कमी, तेजी से कटते जंगल व पेड़ पौधे, बढ़ता प्रदूषण, घातक रेडिएशन तथा शहरीकरण आदि प्रमुख है। रोजाना अपने आंगन, खिड़की-दरवाजों, बाहरी दीवारों पर पक्षियों के लिए दाना- पानी रखना, आंगन में उन्हें घोंसला बनाने देना, कीटनाशकों का कम प्रयोग करना, घर व आंगन के आसपास हरियाली बढ़ाकर हम इन गोरौया को विलुप्त होने से बचा सकते है। अगर समय रहते हमने गोरौया का संरक्षण नही किया तो, ये भविष्य मे एक इतिहास का पक्षी बनकर रह जायेगे। सरकार तथा प्रकृति प्रेमियों को जन जागरूकता अभियान चलाकर  गौरैया का संरक्षण करना चाहिए। इसके अलावा स्कूली पाठ्यक्रमों में भी  गौरैया तथा अन्य पक्षियों को भी शामिल करना चाहिए।


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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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