भू-गर्भिक संरचना की दृष्टि से भी हिमालय का यह इलाका अत्यन्त संवेदनशील माना जाता है -डॉ श्रीनिवास पिल्ले
ऋषिकेश 10नवंबर 2022। पंडित ललित मोहन शर्मा श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय परिषद परिसर ऋषिकेश में इनोवेशन क्लब द्वारा हिमालय में जलवायु परिवर्तन और अन्य प्राकृतिक आपदाएं और जोखिम न्यूनीकरण प्रबंधन विषय पर विशेष व्याख्यान डॉ श्रीनिवास पिल्ले क्वाजुला नटाल विश्वविद्यालय दक्षिण अफ्रीका द्वारा दिया गया ।
मुख्य अतिथि प्रो के सी पुरोहित पूर्व निदेशक एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय पौड़ी परिसर, व्याख्यानमाला के समन्वयक एवं कला संकाय अध्यक्ष प्रो दिनेश चंद गोस्वामी एवं अध्यक्षता परिसर के प्राचार्य प्रो महावीर सिंह रावत द्वारा की गई Iआपदा प्रबंध पर विशेष व्याख्यान का उद्घाटन परिसर के प्राचार्य प्रोफेसर महावीर सिंह रावत द्वारा किया गया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा प्राकृतिक आपदाओं के कारण मानव जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही अन्य जीव सृष्टि को भी इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। भूकंप, बाढ़, ज्वालामुखी का फटना,सुनामी, बादल फटना, चक्रवात, तूफान, हिमस्खलन,भूस्खलन, सूखा, महामारी आदि ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ हैं जिनसे सदियों से धरती के जीव त्रस्त है।कुछ समय पहले भारत के उत्तराखंड में जलप्रलय आया। पहाड़ों पर बादल फटे। घनघोर बारिश हुई भू-स्खलन आम हो गए हैं। पहाड़ों पर सदियों से जमे हुए पत्थर, पेड़ और मिट्टी अपनी जड़ों से उखड़ गई है। इस कारण कोई भी प्राकृतिक तूफ़ान आता है तो भयंकर विनाश छा जाता है।
डॉ श्रीनिवास पिल्ले ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधन करते हुए कहा हिमालयी क्षेत्र में अक्सर प्राकृतिक आपदाओं भू-स्खलन, बाढ़ व बादल फटने की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। भू-गर्भिक संरचना की दृष्टि से भी हिमालय का यह इलाका अत्यन्त संवेदनशील माना जाता है। भूगर्भीय हलचलों के कारण यहाँ छोटे-बड़े भूकम्पों की आशंका लगातार बनी रहती है।पिछले कुछ दशकों में अनियोजित विकास के कारण पहाड़ों में भू-कटाव और भूस्खलन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।अगर दक्षिण अफ्रीका में भूस्खलन की घटनाएं अखबारों में बड़ी खबर बनती है भारत में उसे इतना महत्व नहीं दिया जाता Iअनियोजित विकास, प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम दोहन व बढ़ते शहरीकरण की स्थिति ने यहाँ के पर्यावरणीय सन्तुलन को बिगाड़ दिया है। इसके चलते प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है। भूकम्प की दृष्टि से उत्तराखण्ड अत्यंत संवेदनशील माना जाता है। इसका अधिकांश भाग हिमालयी भू-भाग में स्थित होने के कारण यहाँ भूकम्प की आशंका प्रबल बनी रहती है।
मुख्य अतिथि प्रो पुरोहित ने अपने संबोधन में जलवायु परिवर्तन और हिमालय विषय पर विस्तृत चर्चा की, प्रो गुलशन कुमार ढींगरा द्वारा द्वारा जैव विविधता और आपदा प्रबंधन पर संबोधन किया I व्याख्यान के समन्वयक प्रो दिनेश चंद्र गोस्वामी ने अपने संबोधन में कहा प्राकृतिक आपदाएं किसी को बताकर नहीं आती वह तो मनुष्य की गलतियों से आती है जिसका खामियाजा कई सारी जान माल की हानि उसे हमें भुगतना पड़ता है.अनियोजित विकास, वनों का अवैध कटान अत्यधिक खनन, नियमों के विपरीत नदी किनारें व सड़कों के किनारे अवैध निर्माण कार्य आपदा को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते है। हमें यह बात भली भाँति समझने की आवश्यकता है कि प्रकृति के साथ संवेदनशील सामंजस्य बनाकर ही संतुलित विकास किया जा सकता है। इससे मानव तथा पर्यावरण दोनों की सुरक्षा हो सकेगी।उन्होंने डॉ पिल्ले अतिथि प्रो पुरोहित का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस विशेष व्याख्यान से छात्र-छात्राओं में आपदा प्रबंधन के प्रति जागरूकता बढ़ेगी।
इस अवसर पर प्रो पी के सिंह, प्रो शांति प्रकाश सती, प्रो अनीता तोमर, प्रो देव मणि त्रिपाठी, प्रो दुर्गा कांत प्रसाद चौधरी, प्रो हेमलता मिश्रा, अशोक कुमार मेंदोला, डॉ धीरेंद्र सिंह यादव ,डॉ अंजनी प्रसाद दुबे, डॉ दीपा शर्मा, डॉ प्रमोद कुकरेती, एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे I
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