टिहरी गढ़वाल: विधायक किशोर उपाध्याय की नई पहल
टिहरी गढ़वाल, 24 मई 2024। टिहरी विधायक और वनाधिकार आंदोलन के प्रणेता किशोर उपाध्याय ने एक नई पहल की घोषणा की है जो वनाग्नि प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और लोक परंपराओं को जीवित रखने पर केंद्रित है।
पहल का उद्देश्य
किशोर उपाध्याय ने बताया कि उत्तराखंड में काफल का विशेष महत्व है। इस पहल के तहत 25 मई को सुमन जयंती के अवसर पर ‘काफल ट्रेल’ नामक एक कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी। इसके अंतर्गत वह स्वयं, पार्टी कार्यकर्ताओं, स्थानीय ग्रामीणों और वन विभाग के साथ काफल प्रदान क्षेत्रों में जाकर काफल तोड़ेंगे। इस दौरान सबसे बेहतर तरीके से काफल तोड़ने वालों को पुरस्कृत भी किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस पहल का उद्देश्य वनाग्नि प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है।
लोक परंपरा दिवस की पहल
किशोर उपाध्याय का कहना है कि वह मुख्यमंत्री से मिलकर इस कार्यक्रम को हर साल लोक परंपरा दिवस के रूप में मनाने की बात करेंगे। इस प्रकार की पहल से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बल मिलेगा, बल्कि लोक परंपराओं को भी जीवित रखा जा सकेगा।
काफल के महत्व पर प्रकाश
पत्रकार वार्ता के दौरान किशोर उपाध्याय ने काफल ट्रेल के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि काफल, हिंसर, किंगोड़ा, घिंघारू, भमोरा आदि फलों का पहाड़ों में विशेष महत्व है। पहले चरण में 25 मई को विभिन्न क्षेत्रों में जाकर काफल तोड़ने का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इन दिनों वनाग्नि विकराल रूप धारण कर चुकी है, जिससे काफल भी जल रहे हैं। ऐसे में वनाग्नि प्रबंधन के लिए काफल को जोड़कर लोगों को वनाग्नि के प्रति जागरूक किया जाएगा।
वन विभाग का सहयोग
विधायक ने बताया कि वन विभाग भी अब काफल की नर्सरी लगाने की योजना बना रहा है, जिससे काफल का रोपण किया जा सकेगा। नई टिहरी सहित ऊंचाई वाले स्थानों पर वन विभाग और जन संगठनों के सहयोग से काफल के पौधे रोपे जाएंगे। मछियारी, ओडू का डांडा, सेलुर-सिल्की, रानीचौरी, ठांगधार, काणाताल जैसे क्षेत्रों में काफल प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
रोजगार के अवसर
किशोर उपाध्याय ने लोगों से अपील की है कि जहां भी काफल होते हैं, इसकी सूचना उन्हें दें। महिलाओं को काफल से रोजगार मिले, इसके लिए वन विभाग को कार्य योजना बनाने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री से भी इस दिशा में कदम उठाने के लिए बात की जाएगी। हर साल इस कार्यक्रम को करने का प्रयास किया जाएगा।
यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण और वनाग्नि प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे लोक परंपराओं और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।