नई पंचायत: नया उजाला

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सपनों को सच करने की पहली अग्निपरीक्षा— क्या निभा पाएंगी पंचायतें उम्मीदों का भरोसा?

27 अगस्त से 2 सितम्बर तक शपथ ग्रहण और पहली बैठक

गांवों में बदलाव की आहट तो गूंज रही है, लेकिन असली सवाल यही है कि पंचायतें इस आहट को ठोस हकीकत में बदल पाएंगी या नहीं। जनता ने भरोसे का मत देकर नई टीम को जिम्मेदारी सौंपी है, अब देखना है कि वादों के दीपक कितनी दूर तक रोशनी फैला पाते हैं।

उत्तराखण्ड की वादियों में लोकतंत्र का नया अध्याय लिखने का समय आ गया है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की सरगर्मियाँ अब थम चुकी हैं, परिणाम घोषित हो चुके हैं और अब प्रतिनिधियों के शपथ ग्रहण तथा प्रथम बैठकों का सिलसिला शुरू होने जा रहा है। यह केवल तिथियों का ऐलान भर नहीं, बल्कि गांवों के भविष्य की दिशा तय करने वाला क्षण है। 27 अगस्त से 2 सितम्बर तक गांवों की चौपालों और पंचायत भवनों में लोकतंत्र की आवाज़ गूंजेगी।

शपथ की यह औपचारिकता दरअसल जनता के विश्वास की पहली सीढ़ी है। जब ग्राम प्रधान, प्रमुख तथा जिला पंचायत अध्यक्ष अपने दायित्व का संकल्प लेंगे तो उनके शब्दों में केवल कानूनी मजबूरी नहीं होगी, बल्कि गांव की आशाओं और आकांक्षाओं की प्रतिध्वनि भी सुनाई देगी। हर गांव का बच्चा चाहता है कि उसका स्कूल बेहतर हो, हर किसान चाहता है कि उसकी खेत की मेड़ तक पानी पहुँचे, हर माँ चाहती है कि आंगनबाड़ी केंद्र सचमुच बच्चों का पोषण करे, हर युवा चाहता है कि गांव में रोजगार और अवसर की किरण चमके। गांव की सड़कें पक्की हों आदि..आदि।

गांवों की पगडंडियाँ चुनावी वादों की गवाह रही हैं। अब वही पगडंडियाँ विकास की राह बनने की बाट जोह रही हैं। प्रतिनिधियों के पास साधन सीमित हैं, लेकिन उम्मीदें असीमित। यही लोकतंत्र की असली परीक्षा है। पंचायत भवन की पहली बैठकें केवल कार्यवाही की औपचारिकता नहीं होंगी, बल्कि इन्हीं में आने वाले पाँच वर्षों की तस्वीर छिपी होगी। कौन-सा गांव किस योजना से बदलेगा, किस घर तक पेयजल की पाइपलाइन पहुँचेगी, कौन-सा पुल बनेगा और कौन-सी नाली साफ़ होगी — यह सब इन्हीं बैठकों से तय होगा।

लोकतंत्र की यह गाड़ी केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों से नहीं चलती। इसमें जनता का ईंधन और सहयोग भी उतना ही जरूरी है। यदि लोग अपने प्रतिनिधियों से जवाबदेही मांगेंगे, बैठकों में शामिल होंगे और योजनाओं की निगरानी करेंगे, तो पंचायतें केवल दफ्तर नहीं रहेंगी, बल्कि विकास की कार्यशाला बन जाएँगी।

यह सच है कि पंचायत की यात्रा कठिन है, रास्ता लंबा है, लेकिन शुरुआत ही दिशा तय करती है। शपथ के शब्दों से ही यह तय होगा कि आने वाले पाँच साल गांवों की धूप-छाँव कैसे होंगे। यदि प्रतिनिधि ईमानदारी और प्रतिबद्धता के साथ काम करें और जनता उनके साथ कदम से कदम मिलाए, तो उत्तराखण्ड के गांव न केवल आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह संदेश देंगे कि लोकतंत्र सचमुच जनता के लिए है।

आज गांवों की आँखों में उम्मीदों की चमक है। यह चमक फीकी न पड़े, यही पंचायतों की पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।

* गोविन्द पुंडीर, संपादक

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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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