सनातनी संस्कृति, सभ्यता सबसे प्राचीन- नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

टिहरी गढ़वाल। ग्राम खेडागाड में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत पित्रमोक्ष कथा का यज्ञ हवन के साथ शनिवार को समापन हो गया। प्रातःकाल में पंचाग पूजन के उपरांत वेदपाठी ब्राहमणों ने लक्ष्मी नारायण महायज्ञ सम्पन्न करवाया।
यज्ञ समापन सत्र में प्रवचन करते हुए व्यासपीठ पर विराजमान नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण सुदामा मिलन का बड़ा ही सुन्दर मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने बताया कि सक्षम मित्र को अपने अन्य मित्रों को भी सक्षम बनाने का प्रयास करना चाहिए तभी समाज में निर्धनता समाप्त हो सकती है। भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला, प्रत्येक कर्म अपने आप में कुछ विशेष संदेश लिये हैं। सात वर्ष के कन्हैया ने सात दिनों तक सात कोसीय गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठाया और नाम पड़ा गिरिधर और गिरिधारी। गोवर्धन धारण लीला करके भगवान श्रीकृष्ण ने मानवमात्र को यह संदेश दिया कि मानव जीवन कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा पड़ा है।
दृढ़ संकल्प और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर छोटे से कन्हैया ने बड़ी ही निर्भीकता और सुगमता के साथ उस विशाल गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। जीवन की समस्याएं भले ही पहाड़ जितनी विशाल हों लेकिन अपने आत्मविश्वास को डिगाए बिना, दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ उसका सामना किया जाए तो हम पायेंगे कि बड़े ही आसानी से उसका निराकरण भी हो सकता है।
सनातनी संस्कृति, सभ्यता सबसे प्राचीन है और नूतन भी क्योंकि यह परिवर्तन को स्वीकार कर आगे बढ़ती है जबकि संकीर्ण पंथों में एक ही जड़ विचार पर चलने की मजबूरी होती है। कथा समापन के बाद विशाल पित्रभोज भण्डारा आयोजित किया गया।
आज समापन दिवस के अवसर पर साध्वी माँ देवेश्वरी, मेहर सिंह नेगी, सोबन सिंह नेगी, मोहन सिंह नेगी, कुलवीर नेगी, करन सिंह, साहिल सिंह, शैला देवी, विनीता देवी, रेखा देवी, मोनिका देवी, रणजीत सिंह नेगी, महेन्द्र सिंह नेगी, सरिता मनवाल, अनुज मनवाल, वेदपाठी विपिन नौटियाल, आचार्य सूर्य शर्मा, आचार्य राहुल द्विवेदी, आचार्य मनोहरी कोठियाल एवं बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।