श्रद्धा, सेवा और भक्ति से पितरों को मिलता है मोक्ष: डॉ दुर्गेश आचार्य महाराज

टिहरी गढ़वाल। शहीद स्मारक, बौराड़ी में चल रहे श्रीमद् देवी भागवत कथा अमृत महोत्सव के सातवें दिन कथा का मंच मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रसंगों से सजा। राष्ट्रीय संत डॉ. दुर्गेश आचार्य महाराज ने देवी भागवत पुराण से सुकन्या और महर्षि च्यवन की प्रेरणादायी कथा सुनाते हुए भक्ति और पतिव्रता धर्म की अद्भुत शक्ति का वर्णन किया।
उन्होंने बताया कि कैसे राजा शर्यात की पुत्री सुकन्या ने अनजाने में महर्षि च्यवन की तपस्या भंग कर दी और राज्य पर संकट आ गया। अपनी गलती का प्रायश्चित करते हुए सुकन्या ने महर्षि की सेवा और भक्ति में स्वयं को समर्पित कर दिया। सुकन्या की अटूट सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि च्यवन ने उसे अपनी पत्नी बनाया। उनके समर्पण से प्रभावित देव वैद्य अश्विनी कुमारों ने महर्षि को फिर से युवा बना दिया। इसके प्रतिफल में च्यवन ऋषि ने अश्विनी कुमारों को सोमरस पान का अधिकार दिलवाया, जो पहले केवल प्रमुख देवताओं के लिए था।डॉ. आचार्य महाराज ने कहा कि सुकन्या का जीवन स्त्री की निष्ठा, भक्ति और सेवा का आदर्श उदाहरण है, जो सिखाता है कि सच्चे मन से किया गया प्रायश्चित सबसे बड़े दोष को भी मिटा सकता है।
कथा वाचन में उन्होंने राजा सत्यव्रत (त्रिशंकु) की कथा भी सुनाई — कैसे पिता के शापवश चांडाल बने सत्यव्रत को ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ से सशरीर स्वर्ग भेजने का प्रयास किया गया, पर इंद्र ने अस्वीकार कर दिया। अंततः विश्वामित्र ने त्रिशंकु स्वर्ग रचा, जहाँ त्रिशंकु उल्टे लटके रह गए। यह कथा अधूरी इच्छाओं और तपस्या की शक्ति का प्रतीक है।
सातवें दिन की कथा में डॉ. दुर्गेश आचार्य महाराज ने भक्तों से गौमाता की रक्षा और सेवा का संकल्प लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गाय केवल धर्म नहीं, बल्कि पर्यावरण, कृषि और जीवन का आधार है। उन्होंने गायों की देखभाल, गौशालाओं की सहायता और पशु क्रूरता रोकने के लिए जनजागरण फैलाने का आग्रह किया।
कथा के समापन पर शहीदों और प्राकृतिक आपदाओं में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए विशेष प्रार्थना और यज्ञ का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि समाज में व्याप्त विकृतियों और अंधकार को दूर करने का सबसे शक्तिशाली मार्ग यज्ञ और सामूहिक प्रार्थना है, जो न केवल आत्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि समाज में सकारात्मकता और एकता का संचार भी करता है।