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18 मई को खुलेंगे चतुर्थ केदार भगवान रूद्रनाथ के कपाट: उत्सव डोली हुई रवाना

18 मई को खुलेंगे चतुर्थ केदार भगवान रूद्रनाथ के कपाट: उत्सव डोली हुई रवाना
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गढ़ निनाद न्यूज़ * 16 मई 2020।

गोपेश्वर: चतुर्थ केदार भगवान रूद्रनाथ की उत्सव डोली आज शनिवार को पूजा-अर्चना के साथ गोपीनाथ मंदिर से रूद्रनाथ धाम के लिए रवाना हो गई। सोमवार 18 मई को भगवान रूद्रनाथ के कप भी खुल जाएंगे। गोपेश्वर गांव की महिलाओं ने भगवान रुद्रनाथ को अर्घ् लगाया और विश्व शांति की कामना के साथ कोरोना महामारी से सम्पूर्ण विश्व की रक्षा की मनौती मांगी।

शनिवार को रुद्रनाथ जी की डोली पनार बुग्याल और 18 मई को ब्रह्ममुहूर्त में सुबह छह बजे कपाट खुले जाएंगे।

कोरोना महामारी के चलते रूद्रनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी समेत मंदिर समिति से जुड़े 20 लोगों को ही प्रशासन द्वारा रूद्रनाथ मंदिर में जाने की अनुमति दी है।

शनिवार को सुबह मंदिर के पुजारी हरीश भट्ट ने भगवान भोलेनाथ का अभिषेक कर सभी पूजाएं सम्पन्न कर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण किया, इसके बाद रुद्रनाथ भगवान की उत्सव डोली को यहां से रवाना किया। मंदिर समिति के मुताबिक इस साल रूद्रनाथ में पूजा की जिम्मेदारी पुजारी वेदप्रकाश भट्ट को दी गई है।

बता दें कि चतुर्थ केदार रूद्रनाथ में भगवान के मुखारविन्द व पंचम केदार कल्पेश्वर कल्पनाथ में भगवान शिव की जटाओं के दर्शन होते हैं। रूद्रनाथ मंदिर की महत्ता का उल्लेख विभिन्न पुराणों व केदारखण्ड में भी मिलता है। रूद्रनाथ मंदिर में पूजा केवल दुर्लभ ब्रहम कमल फूल से की जाती है। 

महाशिवपुराण’ में उल्लेख है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने कुल, परिवार व सगोत्र बंधु-बांधवों की हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए के हिमालय में आए थे। यह आज्ञा उन्हें वेदव्यास ने दी थी। पांडव सगोत्र हत्या के दोषी थे, इसलिए भगवान शिव उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। 

केदारनाथ में महिष (भैंसे) रूप धारी भगवान शिव जब धरती में समाने लगे तो पांडवों ने उन्हें पहचान लिया और भीम ने उनका आधा शरीर पकड़ लिया। तब शिव ने प्रसन्न होकर पांडवों को दर्शन दिए और वह सगोत्र हत्या के पाप से मुक्त हुए। महादेव महिष के पृष्ठभाग के रूप में केदारनाथ में विद्यमान हैं, जबकि उनका अगला हिस्सा, जो धरती में समा गया था, नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में प्रकट हुआ। इसके अलावा भुजा तुंगनाथ, मुख रुद्रनाथ, नाभि मध्यमेश्वर और जटाएं कल्पेश्वर धाम में प्रकट हुईं। इसलिए इन पांचों धामों को पंचकेदार कहा गया।


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Govind Pundir

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