अतीत की खिड़की से
उत्तराखंड राज्य आंदोलन: अगस्त महीना
विक्रम बिष्ट
अगस्त माह का उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में खास महत्व है। दो अगस्त 1994 को पौड़ी में इंद्रमणि बड़ोनी के नेतृत्व में उत्तराखंड क्रांति दल की भूख हड़ताल शुरू हुई थी। इनमें रतन मणि भट्ट, विशन पाल सिंह परमार, वासवानन्द पुरोहित, प्रेम दत्त नौटियाल, पान सिंह रावत, विष्णुदत्त बिंजोला और दौलत राम पोखरियाल शामिल हुए थे।
उत्तराखंड राज्य निर्माण के साथ पहाड़ को ओबीसी आरक्षण की परिधि में शामिल करना, जनसंख्या के आधार पर पंचायतों का परिसीमन करना, हिल कैडर को सख्ती से लागू करना और वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन की मांगे शामिल थी।भूख हड़ताल शुरू होने के दिन पंचायत प्रतिनिधियों की पौड़ी में भारी उपस्थिति रही थी।
छह-सात अगस्त की रात पौड़ी प्रशासन ने पुलिस बल प्रयोग कर अनशन कारियों को गिरफ्तार कर दिया। बस प्रतिक्रिया स्वरुप पहाड़ धधकने लगा।
इससे सात साल पहले 9 अगस्त 1987 में पृथक राज्य की मांग को लेकर उत्तराखंड में बंद और चक्का जाम रहा। उक्रांद के इस आह्वान को जबरदस्त जनसमर्थन मिला। देहरादून जैसे शहर में भी बंद को भारी सफलता मिली। राष्ट्रीय स्तर पर इस आंदोलन की चर्चा होने लगी। हालांकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर सभी राष्ट्रीय दल इस मांग के पक्ष में नहीं थे।
सन 1942 के में महात्मा गांधी ने 9 अगस्त को अंग्रेजों भारत छोड़ो का आह्वान किया था। देश की आजादी के लिए वह निर्णायक साबित हुआ। अगस्त 1986 में उक्रांद उपाध्यक्ष एवं कीर्तिनगर ब्लाक प्रमुख दिवाकर भट्ट ने टिहरी आकर मुझे दल की सदस्यता देकर जिला महामंत्री का दायित्व सौंपा। कीर्तिनगर के उप प्रमुख जनार्दन कुकशाल उक्रांद के जिलाध्यक्ष थे। टिहरी क्रांति के एक नायक दादा दौलतराम उनके पुरखे हैं।
मदनमोहन नौटियाल, विशन पाल परमार, जनार्दन कुकशाल कुछ दिन बाद टिहरी पहुंचे। राज्य निर्माण के पक्ष में माहौल बनाने के लिए आम सभाओं का दौर था। टिहरी में धारा 144 लागू थी। सभा पर प्रतिबंध था। हरिराज किशोर आईएएस एसडीएम टिहरी सदर थे। हमारे एक साथी दाताराम चमोली सभा की अनुमति लेने उनके पास गए थे। उन्होंने शांति व्यवस्था का हवाला देकर अनुमति देने से इंकार कर दिया। चमोली को अनुमति देने का मांग पत्र लेकर इस आश्वासन के साथ कि हमारी ओर से शांति भंग नहीं होगी। अनुमति दी जाती तो हम निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने को विवश होंगे। सभा की अनुमति मिल गई। इस तरह वर्षों के अंतराल में टिहरी शहर में राज्य आंदोलन के पक्ष में आम सभा हुई।