Ad Image

9 अगस्त ‘अगस्त क्रांति’ पर विशेष

9 अगस्त ‘अगस्त क्रांति’ पर विशेष
Please click to share News

गोविन्द पुण्डीर*

सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत के इतिहास में ‘अगस्त क्रांति’ के नाम से जाना जाता है। क्योंकि इस दिन की शुरुआत 9 अगस्त 1942 को हुई थी। मुंबई के जिस पार्क से यह आंदोलन शुरू हुआ, उसे अगस्त क्रांति मैदान नाम से जाना जाता है। 

आपको पता होगा जब द्वितीय विश्व युद्ध में समर्थन लेने के बावजूद अंग्रेज़ भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” के रूप में आजादी की अंतिम जंग का ऐलान कर दिया जिससे अंग्रेजी शासक अत्यंत घबराए हुए थे,  क्योंकि उन्होंने हमें पूर्ण आजादी देने से इंकार कर दिया था।

दरअसल 9 अगस्त का दिन हम भारतवासियों के जीवन की महान घटना है। 9 अगस्त देश की जनता की उस इच्छा की अभिव्यक्ति थी जिसमें उसने यह ठान लिया था कि हमें पूर्ण आजादी चाहिए जिसे हम लेकर ही रहेंगे । यह भी सच्चाई है कि पहली बार करोड़ों लोगों ने आजादी की अपनी इच्छा जाहिर की थी। कुछ जगहों पर इसे जोरदार ढंग से प्रकट भी किया गया था।

अगस्त क्रांति के नाम से मशहूर भारत छोड़ो आंदोलन का करीब तीन-चार साल का दौर अत्यंत महत्त्वपूर्ण होने के साथ पेचीदा भी था। यह आंदोलन देशव्यापी था। इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर भारत की जनता ने हिस्सेदारी की और अभूतपूर्व साहस और सहनशीलता का परिचय दिया।

बता दें कि 8 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ और 9 अगस्त की रात को कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए।

इस वजह से आंदोलन की सुनिश्चित कार्ययोजना नहीं बन पाई थी। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व सक्रिय था,लेकिन उसे भूमिगत रह कर काम करना पड़ रहा था। 

इसी दौरान जेपी ने क्रांतिकारियों का मार्गदर्शन करने, उनका हौसला अफजाई करने और आंदोलन का चरित्र और तरीका स्पष्ट करने वाले ‘आजादी के सैनिकों के नाम’ दो लंबे पत्र अज्ञात स्थानों से लिखे। भारत छोड़ो आंदोलन के महत्त्व का एक पक्ष यह भी है कि आंदोलन के दौरान जनता खुद अपनी नेता थी। आंदोलन में इस बात पर निर्णय किया गया कि आजादी की इच्छा में भले ही नेताओं का भी साथ था, लेकिन उसे हासिल करने की ताकत निर्णायक रूप से जनता की ही थी।

गांधी जी ने आंदोलन को समावेशी बनाने के लिए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में दिए अपने भाषण में समाज के सभी तबकों को संबोधित किया । सभी तबकों और समूहों से देश की आजादी के लिए ‘करो या मरो’ के उनके व्यापक आह्वान का आधार उनका पिछले पचीस सालों के संघर्ष का अनुभव था। 

इस आंदोलन के दबाव में भारत के आधुनिकतावादी मध्यम वर्ग से लेकर सामंती नरेशों तक को यह लग गया था कि अंग्रेजों को अब भारत छोड़ना होगा। इसलिए अपने वर्ग-स्वार्थ को बचाने और मजबूत करने की फिक्र उन्हें लगी। प्रशासन का लौह-शिकंजा और उसे चलाने वाली भाषा तो अंग्रेजों की बनी ही रही,साथ ही विकास का मॉडल भी वही रहा।

हुआ यह कि भारत का ‘लोकतांत्रिक, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष’ संविधान भी पूंजीवाद और सामंतवाद के गठजोड़ की छाया से पूरी तरह बच नहीं पाया। अंग्रेजों के वैभव और रौब-दाब की विरासत,जिससे भारत की जनता के दिलों में भय बैठाया जाता था। भारत के शासक वर्ग ने इस विरासत को अपनाए रखा जो लगभग बदस्तूर जारी है। हम ‘अगस्त क्रांति’ दिवस को मात्र खानापूर्ति भर के लिए मना रहे हैं ऐसा ही कुछ लगता है। एक बार आजादी दिलाने वाले उन रणबांकुरों को सलाम।


Please click to share News

Govind Pundir

Related News Stories