डेढ़ सौ सालः फिर वही हाल–2
रेणी
विक्रम बिष्ट।
गढ़ निनाद समाचार* 18 फरवरी 2021।
नई टिहरी । 1970 के दशक के पूर्वार्ध में यूपी की सरकार ने रेणी के जंगल कटान का ठेका खेल सामग्री बनाने वाली निजी कम्पनी को दे दिया था। उससे पूर्व वन विभाग ने एक स्थानीय सहकारी समिति को अंगू के दो पेड़ की अनुमति देने से मना कर दिया था। तर्क था कि सरकार ने अंगू के पेड़ों को काटने का ठेका कम्पनी को दे दिया।
भाग्य विधाताओं का फिर वही खेल! रेणी गांव की गौरा भवानियों का मायका, ससुराल सब कुछ था वह जंगल। जिसको संवेदनहीन तंत्र ने बेच दिया था। भाग्य विधाताओं की आत्मा नहीं होती। गांव और जंगल के बीच अन्तरात्मा का संबंध होता है। उस पर आघात होता जान उसकी अस्मिता बचाने के लिए उठ खड़ी हुई गौरायें। सहस्त्र गुना ताक़तवर सौदागर को भागना पड़ा। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
गौरा का चिपको जग प्रसिद्ध हुआ। उसकी आत्मा थोथे नारों, पुरस्कारों की होड़ में गुम हो गयी, शहिदों के सपनों के उत्तराखण्ड में भी उसके लिए जगह नहीं है। सपनों को साकार करने के लिए बलिदान तो देना पड़ता है। चाहे चकाचक विकास की सुरंग में हो या घास लकड़ी, खेत, खलियान की बटिया में या सुरक्षा चौकी पर।
सपनों के सौदागरों को कोई फर्क नही पड़ता। 46 साल पहले बसंत का उत्सव रेणी में कुछ और था। एक विजयोत्सव शोषण मूलक व्यवस्था पर हिमालय की बेटियों की विजय का उत्सव। तब लोग रेणी पहुंच कर उस विजयोत्सव पर ख़ुशियों के संग झूम रहे थे।
आज वहां मातम है। ख़ौफ़ है। ऋषिगंगा परियोजना की कल्पना से लेकर निर्माण तक की फाइल क्या कभी सार्वजनिक होगी ? ताकि बदरीदत पांडे, पी.सी. जोशी, प्रताप सिंह नेगी, नरेन्द्र सिंह बिष्ट, देवी दत पंत, जसवंत सिह बिष्ट ,सोबन सिंह जीना, इन्द्रमणि बडोनी के सपनों की फाइल खुले, उस पर सार्थक बहस हो।