तहसीलदार के रिक्त पदों पर प्रशासनिक अधिकारियों को प्रभार दिया जाना तर्क और न्याय संगत- केशव गैरोला
गढ़ निनाद समाचार* 25 फरवरी 2021।
घनसाली से लोकेंद्र जोशी। उत्तराखंड कलेक्ट्रेट मिनि0 कर्मचारी संघ के प्रांतीय महामंत्री श्री केशव गैरोला द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि, भू लेख संवर्गीय कर्मचारी महासंघ के द्वारा तहसीलदार के रिक्त पदों पर मिनिस्ट्रियल कर्मचारी से पदोन्नत राजपत्रित श्रेणी दो प्रशासनिक अधिकारियों को प्रभार दिए जाने का विरोध करना अव्यवहारिक एवं तर्क हीन है। जिसका कि उत्तराखंड कलेक्ट्रेट मिनिस्टीरियल कर्मचारी संघ विरोध करता है और आवश्यकता पड़ने पर आंदोलन के साथ-साथ न्यायालय के शरण में जाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
गैरोला ने कहा कि, उत्तराखंड राज्य के गठन से पूर्व संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के रेवेन्यू मैनुअल नियम- 355 में व्यवस्था है कि तहसीलों में जहां नायब तहसीलदार/ तहसीलदार के पद रिक्त हैं,उन तहसीलों में राजस्व लेखाकार तहसीलदार की अनुपस्थिति में ऐसे प्रभार को ग्रहण करेगा। किंतु राजस्व परिषद के द्वारा उक्त मैनुअल में निहित व्यवस्था का जानबूझकर उल्लंघन किया जा कर नायब तहसीलदार एवं तहसीलदारों की अनुपस्थिति में राजस्व उप निरीक्षकों को कार्यभार दिया जाना गैर कानून और मैनुअल में निहित व्यवस्था का घोर उल्लंघन है। जिसमें संशोधन कर तहसीलदारों के रिक्त पदों पर अब राजस्व परिषद के द्वारा प्रशासनिक अधिकारियों को कार्यभार दिया जाना स्वागत योग्य निर्णय है। उत्तराखंड कलेक्ट्रेट मिनिस्ट्रियल कर्मचारी संघ माननीय अध्यक्ष राजस्व परिषद का आभार व्यक्त करता है।
गैरोला ने कहा कि राजस्व परिषद के द्वारा पूर्व में रेवन्यू मैनुअल में निहित व्यवस्था को और स्पष्ट करते हुए कहा है कि तहसीलों में कार्यरत प्रशासनिक अधिकारी/वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का पद श्रेणी दो राजपत्रित है। जोकि तहसीलदार के समकक्ष वेतनमान का होता है। जबकि राज्य की तहसीलों में कार्यरत नायब तहसीलदार एवं राजस्व निरीक्षक के साथ-साथ राजस्व उप निरीक्षक का पद गैरराजपत्रित होकर तृतीय श्रेणी के अंतर्गत है और उन्हें तहसीलदार की अनुपस्थिति में कार्यभार दिया जाना गलत एवम् नियमों के विरूद्ध है।
गैरोला ने कहा है कि उत्तराखंड राज्य परिषद के जिला कार्यालय में मिनिस्ट्रियल संवर्ग नियमावली 1980 के अनुसार कार्यालय अधीक्षक के पद की व्यवस्था थी, जो जिलाधिकारी के कार्यालय में कार्यालय अधीक्षक के रूप में कार्य करते हुए जिला कार्यालयों के समस्त पटलों को नियंत्रित करता था वर्तमान में पदों का समाप्त होने के फलस्वरूप अब वरिष्ठ अथवा मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पदों का सृजन उत्तराखंड राज्य सरकार के द्वारा किया गया है जो कर्मी पूर्व में पदोन्नति के उपरांत कार्यालय अधीक्षक के रूप में जिले के प्रथम अधिकारी अर्थात जिलाधिकारी के कार्यालय की व्यवस्था संभालते हो तो उसी संवर्ग से वेतनमान में पदोन्नत हुए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अथवा मुख्य प्रशासनिक अधिकारी को तहसील के प्रभारी तहसीलदार के दायित्व को सौंपा जाना बिल्कुल उचित एवं न्याय संगत है।
उत्तराखंड कलेक्ट्रेट मिनिस्ट्रियल कर्मचारी संघ ने ज्ञापन के माध्यम से माननीय अध्यक्ष राजस्व परिषद से मांग की है कि मिनिस्ट्रियल एसोसिएशन संवर्ग के सभी वरिष्ठ मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पद पर पदोन्नति से पूर्व न्यायालयों ,वीआईपी ,प्रोटोकॉल ,राजस्व वसूली, भूलेख, पुलिस प्रशासन समन्वय , दैवीय आपदा के साथ-साथ जिले के लगभग 44 विभागों से समन्वय आदि सभी महत्वपूर्ण पदों पर सेवा कर उन सभी कार्यों का महत्वपूर्ण ज्ञान रखते हैं और ऐसे अधिकारियों को तहसीलदार का प्रभार दिये जाने से राजकीय कार्यों को गति प्रदान होगी। वहीं दूसरी ओर ऐसा होने से विधि विरुद्ध एवं गलत कार्यों पर प्रभावी ढ़ंग से अंकुश भी लगेगा।
ज्ञापन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के समय में राजस्व उपनिरीक्षकों (पटवारी) की नियुक्ति हेतु योग्यता इंटरमीडिएट पास थी, पर नियुक्त के दौरान पटवारी ट्रेनिंग का दिया जाना उक्त पद हेतु व्यक्ति को दक्ष होना व न्यूनतम अहर्ता रखी गई। उत्तराखंड राज्य में उक्त पुलिस ट्रेनिंग जो राजस्व उपनिरीक्षक पद की प्रारंभिक आवश्यकता है, जिसे बिना किसी अन्य विशेष योग्यता के उनके वेतनमान में बढ़ोतरी कर राज्य सरकार पर आर्थिक भार बढ़ाया गया है। जबकि वर्तमान में उत्तराखंड राज्य के अधिकांश क्षेत्र नियमित पुलिस में सम्मिलित हो गए तथा अवशेष क्षेत्र भी शीघ्र नियमित पुलिस में सम्मिलित कर दिए जाएंगे।
ज्ञापन में उत्तराखंड कलेक्ट्रेट मिनिस्ट्रियल कर्मचारी संघ ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि, भूलेख संवर्गीय कर्मचारी महासंघ के द्वारा राजस्व परिषद पर अनुचित दबाव बनाकर तहसीलदारों के रिक्त पदों पर प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति का विरोध किया जाता है तो उत्तराखंड कलेक्ट्रेट मिनिस्ट्रियल कर्मचारी संघ इसका डट कर विरोध करेगा और आंदोलन करने के साथ-साथ न्यायालय की शरण लेने के लिए बाध्य होगा।