” अम्मा “
डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
दुनियां के जितने भी रिश्ते ,
सबसे अधिक भाती है अम्मा ।
देकर जन्म कोख से अपनी ,
पालती पग-पग पर है अम्मा ।।
जल थल नभ मे जो कुछ भी है ,
उन सबसे अच्छी है अम्मा ।
प्यासे का पानी भूखे का भोजन ,
है अन्धे की लाठी अम्मा ।।
हम सब भाई-बहिन जब खाते ,
पेट भर गया कहती अम्मा ।
बिस्तर मे सदा हमें सुलाकर ,
नींद लेती नंगे मे अम्मा ।।
परीश्रम की प्रतिमूर्ति बनकर ,
कर काम हमे सिखाती अम्मा ।
मकान को बनाती है घर ,
अपने सत्कर्मों से अम्मा ।।
काम बोझ किसे कहते हैं ,
कभी न जान पाई अम्मा ।
हरपल प्रसन्नता का भाव लिये ,
खुशी – खुशी कर लेती अम्मा ।।
बनती बच्चों के संग बच्ची ,
ऐसी कला छुपाये अम्मा ।
शिष्टाचार किसे कहते हैं ,
बिना कहे बतलाती अम्मा ।।
बुरा जो करने आता कोई ,
सुधरने का पाठ पढ़ाती अम्मा ।
अहित किसी का कोई करता ,
विकराल रूप तब धरती अम्मा ।।
रिश्तों की जब चादर फटती ,
तुलपाई तब करती अम्मा ।
आग के गोले जब बरसाते ,
मुसलधार तब बरसती अम्मा ।।
शिक्षा-संस्कारों की गठरी देकर ,
ससुराल भेजती बेटी को अम्मा ।
जहाँ – जहाँ भी विचरण करती ,
समरसता पाठ पढ़ाती अम्मा ।।
कोई भी बीमार जब होता ,
डॉक्टर तब बन जाती अम्मा ।
जीवन मे अन्धकार जब घिरता ,
प्रकाश पुंज बन जाती अम्मा ।।
परिस्थिति देख कठोर-कोमल ,
स्वभाव बनाती हर दिन अम्मा ।
कभी मिठाई कभी खटाई ,
कर्म फल सबको देती है अम्मा ।।
बेटी के हाथ पीले करके ,
भाग्य पर खूब इठलाती अम्मा ।
देश के खातिर शहीद बेटे पर ,
गर्व से भर जाती है अम्मा ।।
शिक्षा – संस्कार बच्चों को देना ,
अपना कर्तव्य समझती अम्मा ।
वंशबृद्धि प्रगति सम्मान देखकर ,
बहुत हर्षित होती है अम्मा ।।