आस्था: कल (आज) है वट सावित्री व्रत, क्या है पूजा विधान
Garh Ninad Samachar ।
ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। कहा जाता है कि सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की आत्मा को अपने तपोबल से यमराज से वापस ले लिया था। यह घटना ज्येष्ठ अमावस्या तिथि को हुई थी। इसलिए हर साल इसी दिन यह व्रत रखा जाता है। इसी दिन शनि जयंती मनाने का भी प्रावधान है।
इस व्रत की पूजा विधि विधान से की जाती है। पूजा के लिए कुछ चीजों की आवश्यकता पड़ती है इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
*इनके बिना अधूरी है पूजा*
वट वृक्ष: वट सावित्री वृक्ष पूजा के लिए बरगद का वृक्ष होना बेहद आवश्यक है। पौराणिक कथाओं की मानें तो वट वृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पति सत्यवान की मृत शरीर को घेर रखा था। जिससे जंगली जानवर उनके शरीर को कोई हानि न पहुंचा पाए। इसलिए वट वृक्ष की पूजा की जाती है।
चना: पौराणिक कथाओं की मानें तो यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था। यही कारण है कि इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है।
कच्चा सूत: कहा जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपने पति के शरीर को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की थी।
सिंदूर: सिंदूर को हिंदू धर्म में सुहाग का प्रतीक माना गया है। सुहागिन महिलायें इस दिन सिंदूर को वट वृक्ष में लगाती हैं। उसके बाद उसी सिंदूर से अपनी मांग भरकर अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु का वरदान मांगती हैं।
बांस का पंखा: ज्येष्ठ माह में गर्मी बहुत होती है। वट वृक्ष को अपना पति मानकर महिलाएं उसे बांस के पंखे से हवा करती हैं। माना जाता है कि सत्यवान लकड़ी काटते वक्त अचेत अवस्था में गिरे थे तो सावित्री ने उन्हें बांस के पंखे से हवा दी थी।