बुधू- “लौट के बुधू कभी भी आए!”
अरे साहब गलत अर्थ मत निकालिए। वे बुधू नहीं हैं। परम ज्ञानी ध्यानी हैं। ज्ञान आपको बांटते ध्यान उनका लगा है, जो परम पद दिलाए। ध्यान भी उन्हीं का रखते हैं जो हमेशा अपने हैं।
वैसे वे आपका पूरा ध्यान रखते हैं, कुर्सी में हों या पैदल। कोरोना जब यहां आया तो वे साल भर आपकी चिंता में जहां तहां ध्यान मगन थे। आपको नहीं दिखे तो आपका दृष्टिकोण का कसूर है। वे आपके साथ हमेशा खड़े हैं। तब तक जब तक आप की मवासी….।
वे इसमें भी ज्ञान बांटते हैं । हे मनुष्य तू क्या लेकर आया था जिसके जाने की चिंता करता है। जो कुछ है यहीं से है यहीं छूट जाएगा। इसलिए मोह माया त्याग और मेरी तरफ आ।
तो वे 5 साल के लिए हमारा सुधारने का कर रहे हैं। उनको हमारी इतनी चिंता सता रही थी कि अपनी कुटिया में रो-रो कर बुरे हाल थे। भला दुख की मधुर मुस्कान के साथ आपके पास कैसे आते।
उनको हमारे खेत, खलिहान, जंगल, रोजगार की चिंता है। इसलिए एकांतवास में रहकर आपके लिए कठिन साधना करनी पड़ती है। बस एक बार सत्ता का सुख भोगने का फिर अवसर मिल जाए तो आपके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे।
वे महान हैं, इसलिए आपके द्वार आ रहे हैं,अपनों के साथ। उनका स्वागत करें, आवभगत करें। वे आपकी हमारी तरह नहीं हैं।– बुधू।