मानव उत्पादकता हेतु मौन व्रत लाभकारी : पूर्व कुलपति डॉ ध्यानी
लोक आस्था के पावन पर्व’ मौनी अमावस्या’ के शुभ अवसर पर डॉ० पी० पी० ध्यानी, पूर्व कुलपति, श्रीदेव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय ने अवगत कराया कि आधुनिकता के इस दौर में आज मानव सुकून से जीवन जीने के बजाय मानसिक तनाव व अवसाद में जीवन जीने को मजबूर हो रहा है।
आज के परिप्रेक्ष्य में सुकून से जीने के लिए मौन व्रत से अच्छा कोई उपाय नहीं है। डा0 ध्यानी ने बताया कि भारतीय समाज में मौन व्रत एक सामान्य प्रक्रिया रही है और भारतीय संस्कृति में मौन व्रत का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मौन व्रत का मतलब सिर्फ शांत या चुप रहने से नहीं है बल्कि यह एक प्रकार साधना है, जिसमें मानव की उत्पादकता बढ़ती है और वह सुकून से जीवन जीता है।
डा० ध्यानी कहते हैं कि मौन व्रत से मन शांत व पवित्र होता है। एकाग्रता बढ़ती है। तनाव दूर होता है। आध्यात्मिक विकास होता है। सकारात्मक सोच बढ़ती है और व सोचने व समझने की शक्ति बढ़ती है। क्रोध पर नियंत्रण होता है । भावनाओं को बेहतर ढंग से समझने का अवसर मिलता है। स्वयं को गहराई से जानने का अवसर मिलता है। मस्तिष्क सक्रिय होता है और मानसिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
यही नहीं मौन व्रत से आत्म जागरूकता बढ़ती है और आत्म मंथन का अवसर प्राप्त होता है, जिसके फलस्वरूप उत्पादकता बढ़ती है। जीवन जीने में सुकून मिलता है।
बताते चलें कि डा० ध्यानी मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखते हैं और यही उनकी उत्पादकता व सफलता का रहस्य है। उन्होंने कहा कि मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखना चाहिए, और यदि हो सके तो प्रत्येक सप्ताह में एक दिन कम से कम 3 घण्टे मौन रखकर अपनी उत्पादकता बढ़ानी चाहिए।