बौराड़ी में श्रीमद् देवी भागवत कथा का दूसरा दिन: रावणीय शक्तियों के नाश और प्रेम की स्थापना का दिया संदेश

टिहरी गढ़वाल, 02 अक्टूबर 2025 । बौराड़ी के शहीद स्मारक प्रांगण में गंगा विश्व सद्भावना समिति द्वारा आयोजित श्रीमद् देवी भागवत कथा अमृत महोत्सव के दूसरे दिन भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिला।
कथा वाचक डॉ. दुर्गेश आचार्य महाराज ने विजयदशमी के पावन अवसर पर श्रद्धालुओं को शुभकामनाएं दीं और मां दुर्गा से उत्तराखंड सहित पूरे विश्व को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने, शहीदों और आपदा में मृत आत्माओं को शांति प्रदान करने की प्रार्थना की।

रावणीय शक्तियों का नाश और प्रेम का संदेश:
डॉ. दुर्गेश महाराज ने अपने प्रवचन में कहा, “हमारे अंदर की रावणीय शक्तियां—जैसे अहंकार, क्रोध, लोभ और अन्याय—ही समाज में अशांति का कारण हैं। इनका नाश कर हमें आपस में प्रेम, करुणा और सद्भाव के साथ रहना होगा। सत्कर्म ही आत्मोद्धार का सच्चा मार्ग है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज का उत्थान तभी संभव है, जब हम बच्चों को संस्कारवान बनाएं और उन्हें मोबाइल की लत, गलत संगति और नशे से बचाएं। मंत्र “या देवी सर्वभूतेषु विद्या रूपेण संस्थिता” का उच्चारण करते हुए उन्होंने शिक्षा और संस्कारों के महत्व पर बल दिया।
मां दुर्गा के माहात्म्य की कथा:
कथा में मां दुर्गा के महिषासुर मर्दन का वर्णन करते हुए डॉ. दुर्गेश ने बताया कि जब पृथ्वी पर अधर्म और अत्याचार बढ़ता है, तब मां अपने विभिन्न रूपों में अवतरित होकर धर्म की स्थापना करती हैं। “मां दुर्गा लक्ष्मी के रूप में समृद्धि, सरस्वती के रूप में ज्ञान और काली के रूप में अधर्म का संहार करती हैं।” उन्होंने महिषासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं की त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु, महेश—से प्रार्थना का जिक्र किया। त्रिदेवों की शक्तियों से एक ज्योति प्रकट हुई, जो मां दुर्गा के रूप में अवतरित हुईं। मां ने घोषणा की कि महिषासुर का वध केवल हयग्रीव (घोड़े का सिर और मनुष्य का शरीर) ही कर सकता है। मां की कृपा से हयग्रीव अवतरित हुए और राक्षस का अंत हुआ। इस कथा ने श्रद्धालुओं को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया।
कथा के अगले प्रसंग में डॉ. दुर्गेश ने मत्स्यगंधा (सत्यवती) और पराशर ऋषि के पुत्र कृष्ण द्वैपायन, जिन्हें वेदव्यास के नाम से जाना जाता है, के जन्म की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि वेदव्यास ने महाभारत, अठारह पुराणों और ब्रह्मसूत्रों की रचना की, जो हिंदू धर्म में ज्ञान और आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं। “कृष्ण” उनके गहरे रंग और “द्वैपायन” यमुना नदी के द्वीप पर जन्म के कारण पड़ा। कहा, “व्यास जी का जीवन हमें सिखाता है कि ज्ञान और प्रेम ही रावणीय शक्तियों का नाश कर समाज को जोड़ सकता है।”
कथा के अंत में डॉ. दुर्गेश ने श्रद्धालुओं से अपील की कि वे अपने जीवन में प्रेम, करुणा और एकता को अपनाएं। “मां दुर्गा की कृपा से हम अपने मन के रावण—अहंकार, क्रोध और लोभ—का अंत कर सकते हैं। प्रेम और सद्भाव ही सच्ची विजय है, जो हमें विजयदशमी का संदेश देती है।” उन्होंने समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए संस्कार, शिक्षा और भक्ति को अपनाने पर जोर दिया।