त्रिहरि सिनेमा टिहरी में “बोल्या काका” फिल्म का भव्य उद्घाटन

टिहरी। गढ़वाली भाषा-सिनेमा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आज त्रिहरि सिनेमा, टिहरी में गढ़वाली फिल्म “बोल्या काका” का शुभारंभ राज्य स्तरीय महिला उद्यमिता परिषद् उत्तराखण्ड की उपाध्यक्ष श्रीमती विनोद उनियाल द्वारा किया गया।
इस अवसर पर श्रीमती उनियाल ने फिल्म की प्रशंसा करते हुए निर्माता-निर्देशक शिवनारायण सिंह रावत एवं उनकी टीम को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दीं।फिल्म के प्रीमियर शो में बड़ी संख्या में दर्शक उपस्थित रहे तथा सभी ने फिल्म का भरपूर आनंद लिया। दर्शकों ने उत्तराखंड की संस्कृति, सामाजिक समस्याओं, तथा पहाड़ी जीवन की यथार्थवादी प्रस्तुति के लिए फिल्म की जमकर सराहना की।

बोल्या काका फिल्म अपने संवेदनशील कथानक के माध्यम से न सिर्फ मनोरंजन कर रही है, बल्कि उत्तराखंड के मुद्दों – जैसे पलायन, अंधविश्वास और सामाजिक परिवर्तन – पर भी लोगों को सोचने के लिए मजबूर करती है। फिल्म स्थानीय कलाकारों की सहभागिता और भाषा के प्रयोग के लिए भी उल्लेखनीय है।
इस मौके पर उपस्थित लोगों के बीच जबरदस्त उल्लास और गर्व का माहौल देखने को मिला। फिल्म के निर्माताओं ने भविष्य में भी इस तरह की और फिल्में बनाने का भरोसा जताया है। “बोल्या काका” के प्रदर्शन ने स्पष्ट किया कि गढ़वाली सिनेमा नई ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है और यह क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है।
“बोल्या काका” गढ़वाली भाषा में बनी एक सामाजिक सिनेमा है, जो उत्तराखंड की पहाड़ियों की खूबसूरत वादियों में चल रही एक बस की यात्रा के दौरान तीन मुख्य पात्रों की कहानियों पर केंद्रित है। मुख्य पात्र बौल्या काका, जिनका किरदार हेमंत पांडे ने निभाया है, बस में यात्रियों से उनकी व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं पूछते हैं। फिल्म उनके जीवन के फ्लैशबैक दिखाती है जो उत्तराखंड की असल सामाजिक समस्याओं जैसे अंधविश्वास, नशा, पलायन और सांस्कृतिक बदलाव को दर्शाता है। यह फिल्म स्थानीय भाषा, संस्कृति और जीवनशैली को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है और सामाजिक जागरूकता का एक माध्यम बनती है। निर्देशन शिव नारायण सिंह रावत का है, जिन्होंने इस फिल्म के माध्यम से पहाड़ी समाज की जटिलताओं को दर्शकों के सामने रखा है। फिल्म की शूटिंग मुख्य रूप से चमोली के सुंदर प्राकृतिक दृश्यों में हुई है, जिसमें पद्यात्मक संवाद और संगीत ने इसकी प्रासंगिकता और मजबूती को और बढ़ाया है।यह फिल्म न केवल मनोरंजन करती है बल्कि उत्तराखंड की सामाजिक चुनौतियों के प्रति संवाद शुरू करती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।
** गोविंद पुंडीर, संपादक



