15 अगस्त: उत्तराखंड के लिए दोहरी खुशी
विक्रम बिष्ट*
15 अगस्त हमारा सबसे पावन त्यौहार है। अपने ही घर में गुलामी की बेड़ियों में जकड़े थे सदियों से। भारत माता की अनगिनत संतानों ने दासता की जलालत से मुक्ति के लिए बलिदान दिए थे। नमन करें उनको। मंगलकामनाएं उनके लिए जो सरहदों पर डटे हैं हथेलियों में प्राण लिए हमारी आजादी की सुरक्षा के लिए।
उत्तराखंड के लिए यह पावन दिवस दोहरी खुशी का है। आज के दिन ही देश ने सीमाओं पर मर मिटने वाली, स्वभावतः ईमानदार, स्वाभिमानी और सरल हृदय संतानों की चिर आकांक्षा को संविधानिक मान्यता घोषित की थी। 15 अगस्त 1996 को प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य निर्माण की नीव का पत्थर रखा था।
पूरे देश के लिए अगस्त का महीना इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। पांच साल बाद 1947 में इसी महीने की 15 तारीख को देश ने आजादी की खुली हवा में सदियों बाद सांस ली थी।
आज जो हमारा उत्तराखंड राज्य है उसके लिए 2 अगस्त 1994 में गांधीवादी इंद्रमणि बड़ोनी की अगुआई में निर्णायक संघर्ष हुआ था। 2 साल 13 दिन बाद 15 अगस्त 1996 को हमारे स्वाभिमान के प्रतीक तिरंगे के नीचे प्रधानमंत्री ने हमारी पीढ़ियों से संचित इस आकांक्षा को पूरी करने का संकल्प व्यक्त किया। याद करें उनको भी जिन्होंने इस दिन के लिए कष्ट सहे, बलिदान दिए , अपने निजी हितों की आहुतियां दी और असहनीय अपमान के दंश झेले।
उत्तराखंड की यशस्वी संतानों जिन्होंने देश की आजादी से लेकर उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए अप्रतिम संघर्ष किया कामरेड पीसी जोशी, प्रताप सिंह नेगी, बद्रीदत्त पांडे–और आगे नरेंद्र सिंह बिष्ट, ऋषि बल्लभ सुंद्रियाल, दया कृष्ण पांडे, मानवेंद्र शाह, बी आर टम्टा,देवीदत पंत, जसबंत सिंह बिष्ट, विपिन त्रिपाठी, सुमन लता भदोला , कृपाल सिंह रावत, कमला राम नौटियाल, हुकम सिंह पंवार, कैपटन शूरवीर सिंह पंवार,गोविंद सिंह नेगी, विद्यासागर नौटियाल, मथुरा प्रसाद बमराडा, खटीमा, मसूरी, रामपुर तिराहा, देहरादून, नैनीताल, श्रीनगर, पौड़ी, कोटद्वार के शहीदों को भी याद करें।
20 अगस्त 1998 को महामहिम राष्ट्रपति के आर नारायणन ने उत्तराखंड राज्य निर्माण का विधेयक विचारार्थ उत्तर प्रदेश विधान मंडल को भेजा।
—–शेष कल।