आस्था-विश्वास का प्रतीक पर्व – मकर संक्रान्ति
– डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ग्राम/पो.पुजार गाँव(चन्द्र वदनी)
गढ़ निनाद समाचार* 14 जनवरी 2021।
नई टिहरी । हमारे देश मे संस्कृति की अनेक परमपरायें हैं जो विभिन्न जल धाराओं की तरह पृथकता को लिये हुये होतीे हैं । बोल चाल, रहन सहन खान पान , रीति-रिवाज , पर्व त्यौहार जैसी अनेक परम्परायें भले ही क्षेत्र विशेष मे अपनी कोई विशेष पहचान रखते हों , उसको मनाने का तरीका या उपयोग करने का ढंग अलग हो लेकिन अन्ततोगत्वा उसका उद्देश्य एक ही होता है तथा सम्पूर्ण देश को एकता के सूत्र मे बाँधे रखने मे सक्षम होती हैं । हमारे सभी रीति रिवाज भी इसी आधार पर मनाये जाते हैं।जिनमे मकर संक्रान्ति एक प्रमुख धार्मिक त्यौहार है। जिसका आध्यात्मिक , सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और चिकित्सकीय आदि दृष्टि से अत्यधिक महत्व है।
यह त्यौहार तमिलनाडु मे पोंगल, असम मे बिहू,पंजाब/हरियाणा मे लोहड़ी , केरल-कर्नाटक मे संक्रान्ति ,उत्तराखंड मे उतरैणी /मकरैण/ खिचड़ी संगरांद /घुघत्यातीर तो कुछ प्रान्तों मे भोगाली ,माघी आदि नामों से जानी जाती है ।
ज्योतिष विद्या के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य धनु राशि से मकर राशि मे प्रवेश करते हैं , जो सूर्य आषाढ़ महीने से पौष माह तक छः महीने से दक्षिणायण थे, उत्तरायण हो जाते हैं । भूगोलवेताओं का मानना है कि इस दिन सूर्य मकर रेखा के पास आता है । सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश करने पर अनेक शुभयोग बनने आरम्भ हो जाते हैं। चूड़ाकर्म , विवाह जैसे संस्कार, पूजा-पाठ और अन्य अनेक धार्मिक अनुष्ठान सर्वत्र होने लगते हैं । इस दिन पर घर-घर मे खिचड़ी बनाकर खाई जाती है तथा दाल-चावल जिसे कोरी खिचड़ी कहते हैं, का दान किया जाता है । मान्यता है कि वस्त्र, कम्बल, तिल, गुड़, दक्षिणा आदि के दान देने से देवता प्रसन्न होकर अभीष्ठ फल प्रदान करते हैं । मकर संक्रान्ति के पुनीत पर्व पर सूर्य भगवान को चन्दन और तिल मिश्रित जल अर्पण करने, पूजा-पाठ ,जप-तप आदि कार्यों को शुभ मानते हुये विशेष महत्व बतलाया गया है ।
मान्यता है कि इस पर्व पर नदियों मे स्नान करने से पापों का नाश होता है। इसीलिये यहाँ का जन मानस माघ माह की हड्डियों को भी कँपा देने वाली ठण्ड मे प्रातःकाल ही गंगा स्नान करने के लिये चल पड़ते हैं । इस अवसर पर बहुत सारे लोग अपने शरीर पर तिल का उबटन लगा स्नान कर परम्परा का अनुपालन करते हुये भी देखे-सुने जाते हैं ।
मुख्य पकवान खिचड़ी के अतिरिक्त इस दिन तिल-चौलाई के गुड़ मिश्रित लड्डू खाने-खिलाने का भी रिवाज है ।
मौसम की दृष्टि से चिकित्सा विज्ञान को मध्य नजर रखते हुये इन पकवानों को बनाने, खाने-खिलाने एवं दान का प्राविधान निर्धारित किया गया ।
यह मौसम जलवायु की दृष्टि से अत्यधिक ठण्डा होता है, शरीर मे गर्मी बनी रहे, कफ आदि की शिकायत न हो ,रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े , ऊर्जा मे वृद्धि हो , अपच से छुटकारा मिले , जो खायें वह आसानी से पच जाय जैसी अनेक बातों को केन्द्र मे रखकर खान – पान निर्धारित किया गया ।
खिचड़ी ऐसा पकवान है जो सर्व सुलभ, सस्ता, रोग निरोधक , सुपाच्य ,स्वादिष्ट और बल वर्धक जैसे अनेक गुणों से युक्त है ,इसीलिये तो बच्चों, बूढ़ों और बीमार लोगों को इसे खिलाया जाता है। खिचड़ी पर तो ” आम के आम और गुठली के दाम “ वाली उक्ति चरितार्थ होती है। जहाँ एक ओर इसे खाने से भूख शान्त होती है ,शरीर को ऊर्जा और गर्मी मिलती है वहीं दूसरी ओर रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ने से बीमारियाँ समाप्त होती हैं । गुड़ मिश्रित तिल-चौलाई के लड्डू भी सर्दी मे होने वाली कफ सम्बन्धी रोगों से हमे बचाता है साथ ही इनकी तासीर गरम होती है , जिससे हम पर ठंड का अधिक असर नहीं हो पाता ।
साधारण सी पकवान समझी जाने वाली खिचड़ी मे निहित गुणों के आधार पर धर्म का चोला पहनाकर उसे कुछ तीर्थ स्थलों जैसे वृन्दावन मे बिहारी जी / साईं बाबा मन्दिर मे भगवान के भोग के रूप मे भक्तों को खिलाया जाता है । लोक मंगल की भावना का यह एक स्तुत्य एवं अनुकरणीय पहल है ।
भारत वर्ष के भिन्न-भिन्न प्रांतों मे मकर संक्रान्ति मनाने का ढंग जहाँ कुछ बातों मे एकरूपता लिये हुये दिखता है वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी भी परम्परायें हैं जो अन्य प्रदेशों मे देखने-सुनने को नहीं मिलती ।
कहीं विवाहित लड़की के माता-पिता इस दिन उसे सुहाग की सामग्री के साथ ही खिचड़ी व्यंजन मे प्रयुक्त होने वाली सभी वस्तुयें प्रदान करना अपना परम कर्तव्य समझते हैं तो कहीं रूठने-मनाने के खेल भी खेले जाते हैं। जिसमे पात्रों द्वारा तदनुसार अभिनय किया जाता है । सास रूठती है और बहुयें अनेक प्रकार के उपहार देकर उन्हें मनाती हैं । इस दौरान अन्य उपस्थित महिलायें पारंपरिक लोक गीत गाकर वातावरण आनन्दित बना लेती हैं ।
कहीं परम्परानुसार वादकों द्वारा वाद्य यंत्र बजाने के साथ लोक मंगल की कामना सम्बन्धी गाथायें गाई जाती हैं । कुछ क्षेत्र विशेष मे गिन्दी कौथिक (गिन्दी मेला) का आयोजन कर अनेक प्रकार के क्रिया कलाप आयोजित किये जाते हैं तो कतिपय प्रदेशों मे पतंगबाजी अनिवार्य रूप से की जाती है ।
मकरसंक्रान्ति का सम्बन्ध अनेक धार्मिक प्रसंगों से भी है । कहते हैं इसी दिन माँ गंगा स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर अवतरित हुई तथा भीष्म पितामह को इच्छित मृत्यु का वरदान मिला था ।
इस त्यौहार का भूगोल शास्त्र से भी गहरा सम्बन्ध है ।सूर्य के उत्तरायण होने से मौसम मे परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देने लगता है ।सर्दी का प्रभाव घटने लगता है और धीरे – धीरे गर्मी बढ़ने लगती है । रात छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। जहाँ पहले रात लम्बी और दिन छोटे होने से अंधकार का वर्चस्व अधिक था, अब दिन लम्बे और रातें छोटी होने से प्रकाश मे बढ़ोतरी
” तमसो मा ज्योतिर्गमय “ उक्ति को चरितार्थ करती है, जो प्राणि मात्र के लिये शुभ सूचक है , विशेष रूप से मनुष्यों के लिये क्योंकि दिन लम्बे होने एवं ठण्ड का प्रभाव कम होने से उनकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है । अतः यह कहना अत्युक्ति न होगा कि यह त्यौहार अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला भी है ।
यह दिन मायिके गई हुई विवाहित लड़कियों के लिये ससुराल जाने के लिये शुभ दिन माना जाता है । इस दिन से जगह -जगह अनेक धार्मिक , सांस्कृतिक मेलों का भी आयोजन किया जाता है। जिनमें एक दिवसीय , साप्ताहिक , पाक्षिक तो कुछ मासिक होते हैं। इनमें सांस्कृतिक परिदृश्य स्पष्ट परिलक्षित होता है ।
यह कहना भी अनुचित न होगा कि इस प्रकार के अवसरों पर जिन नदियों ,जलाशयों , स्थानों आदि मे हम स्नान करने या अन्य उद्देश्य से जाते हैं , वहाँ की स्वच्छता आदि का ध्यान रखना भी हमारा नैतिक दायित्व बनता है। यदि हम इन बातों का ध्यान रखते हैं, तभी इन त्योहारों को मनाना सार्थक होगा ।
अतः कहा जा सकता है कि मकर संक्रान्ति का त्यौहार धार्मिक ,सामाजिक, सांस्कृतिक ,सौहार्द, मनोरंजन ,श्रद्धा ,विश्वास , सम्मान, लोहड़ी के रूप मे फसल का स्वागत पर्व के साथ ही राष्ट्रीय एकता अखण्डता एवं समरसता का भी प्रतीक है ।