उत्तराखंड राज्य आंदोलन….9
विक्रम बिष्ट
गढ़ निनाद समाचार* 3 मार्च 2021। टिहरी में उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जड़ें काफी गहरी रही हैं। 1957 में पूर्व रियासत के अंतिम राजा मानवेन्द्र शाह कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए थे। इसके साथ ही उन्होंने पृथक पर्वतीय राज्य के निर्माण की अपनी मुहिम शुरू कर दी थी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पीसी जोशी 1952 से ही पहाड़ के लिए स्वायत्त पृथक प्रशासनिक इकाई की मांग कर रहे थे। टिहरी में इस पार्टी का काफी असर था। गोविंद सिंह नेगी, विद्यासागर नौटियाल, पत्रकार श्यामचंद नेगी, गिरधर पंडित आदि जुझारू नेता भाकपा से जुड़े थे। इन लोगों ने पर्वतीय राज्य निर्माण के पक्ष में हुए लगभग सभी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भागीदारी की थी।
भाकपा और पूर्व राजपरिवार के मानवेंद्र शाह वैचारिक रूप से परस्पर विरोधी थे। यह विरोधाभास टिहरी की राजनीति में अक्सर रहा है। 1948 में तख्तापलट के बाद 1अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का विलय संयुक्त प्रांत (यूपी) में हो गया। इसके पश्चात टिहरी को एक नए जनपद का दर्जा दिया गया ।
1952 में लोकसभा और विधानसभा के पहले आम चुनाव में राजपरिवार और उससे जुड़े लोग कांग्रेस को हराकर यहां की लोकसभा और सभी विधानसभा सीटों पर काबिज हो गए। राजकुमार विचित्र साह के पुत्र कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार यूपी के प्रशासनिक अधिकारी थे। लेकिन उत्तराखंड राज्य के प्रबल समर्थक रहे थे। गोविंद सिंह नेगी 1969, 74 एवं 77 में टिहरी से भाकपा विधायक रहे । राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के विघटन के बाद इंदिरा कांग्रेस ने टिहरी सीट भाकपा के लिए छोड़ दी थी।…जारी।