सत्य से परिचय कराती है श्रीमद्भागवत कथा
 
						रायवाला हरिद्वार। श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने से जीव चक्रधारी पद में पहुंचकर जीवात्मा जीवन और मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है। कलियुग में भागवत कथा तन-मन के विकार दूर करने का सबसे सुगम साधन है। उक्ताशय की बात रुद्रप्रयाग से आए कथा वाचक आचार्य डॉक्टर सुरेश चरण बहुगुणा ने ग्राम पंचायत प्रतीतनगर रायवाला में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में श्रद्धालु जनों से कही।

उन्होंने आगे कहा कि अन्य युगों में तो कठोर परिश्रम के द्वारा भगवान को प्रसन्न करना पड़ता था, किन्तु कलियुग में तो नि:स्वार्थ भाव से सिर्फ कथा के श्रवण करने मात्र से जीवन के सारे विकार दूर हो जाते हैं और वह भव बंधन से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद्भागवत कल्पवृक्ष की ही तरह है, यह हमें सत्य से परिचय कराता है। उन्होंने कहा कि कलयुग में तो श्रीमद्भागवत कथा की अत्यंत आवश्यकता है, क्योंकि मृत्यु जैसे सत्य से हमें यही अवगत कराता है।
महाराज ने राजा परीक्षित के सर्पदंश और कलयुग के आगमन की कथा सुनाई। उन्होंने बताया कि राजा परीक्षित बहुत ही धर्मात्मा राजा थे। उनके राज्य में कभी भी प्रजा को किसी भी चीज की कमी नहीं थी। एक बार राजा परीक्षित आखेट के लिए गए, वहां उन्हें कलयुग मिल गया। कलयुग ने उनसे राज्य में आश्रय मांगा, लेकिन उन्होंने देने से इंकार कर दिया। बहुत आग्रह करने पर राजा ने कलयुग को तीन स्थानों पर रहने की छूट दी। इसमें से पहला वह स्थान है जहाँ जुआ खेला जाता हो, दूसरा वह स्थान है जहाँ पराई स्त्रियों पर नजर डाली जाती हो और तीसरा वह स्थान है जहाँ झूठ बोला जाता हो। लेकिन राज् परीक्षित के राज्य में ये तीनों स्थान कहीं भी नहीं थे। तब कलयुग ने राजा से सोने में रहने के लिए जगह मांगी। जैसे ही राजा ने सोने में रहने की अनुमति दी, वे राजा के स्वर्ण मुकुट में जाकर बैठ गए। राजा के सोने के मुकुट में जैसे ही कलयुग ने स्थान ग्रहण किया, वैसे ही उनकी मति भ्रष्ट हो गई। कलयुग के प्रवेश करते ही धर्म केवल एक ही पैर पर चलने लगा। लोगों ने सत्य बोलना बंद कर दिया, तपस्या और दया करना छोड़ दिया। अब धर्म केवल दान रूपी पैर पर टिका हुआ है। यही कारण है कि आखेट से लौटते समय राजा परीक्षित श्रृंगी ऋषि के
आश्रम पहुंच कर पानी की मांग करते हैं। उस समय श्रृंगी ऋषि ध्यान में लीन थे। उन्होंने राजा की बात नहीं सुनी, इतने में राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने ऋषि के गले में भरा हुआ सर्प डाल दिया। जैसे ही उनका ध्यान समाप्त हुआ, उन्होंने राजा परीक्षित को सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया।
उन्होंने आगे कहा कि हम सब कलयुग के राजा परीक्षित हैं, हम सभी को कालरूपी सर्प एक दिन डस लेगा, राजा परीक्षित श्राप मिलते ही मरने की तैयारी करने लगते हैं। इस बीच उन्हें व्यासजी मिलते हैं और उनकी मुक्ति के लिए श्रीमद्भागवत कथा सुनाते हैं। व्यास जी उन्हें बताते हैं कि मृत्यु ही इस संसार का एकमात्र सत्य है श्रीमद्भागवत की कथा हमें इसी सत्य से अवगत कराती है। आज इस अवसर पर मुख्य यजमान आचार्य कैलाश घिल्डियाल, नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज, आचार्य डाक्टर अनिल कुकरेती, हेमंत शास्त्री, सुरेन्द्र विष्ट, जगदीश रतूड़ी, प्रशांत गौड़ एवं बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे।
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