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अन्नप्राशन संस्कार का भारतीय संस्कृति में बडा़ महत्व – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज

अन्नप्राशन संस्कार का भारतीय संस्कृति में बडा़ महत्व – नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज
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सोलह संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन संस्कार — महापौर अनीता ममगांई

रायवाला हरिद्वार. नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला में अन्नपूर्णा महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में ऋषिकेश नगर निगम की प्रथम महिला महापौर श्रीमती अनीता ममगांई नें हाजिरी लगाई. अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि सोलह संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन संस्कार, जो हमारी भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा है। शिशु जन्म के छठे या सातवें महीने में शिशु को पहली बार शुभ मुहूर्त में मंत्रोचारण के साथ शुद्ध,सात्विक, हल्का एवं पौष्टिक भोजन चटाया जाता है। इस संस्कार का मूल उद्देश्य है कि बचपन से ही मनुष्य सुसंस्कारी अन्न ग्रहण करे।

शास्त्रों में अन्न को प्राणियों का प्राण कहा गया है। शुद्ध एवं सात्विक,पौष्टिक अन्न से ही शरीर व मन स्वस्थ्य रहते हैं तथा स्वस्थ्य मन ही ईश्वरानुभूति का एकमात्र साधन है। आहार शुद्ध होने पर ही अंतःकरण शुद्ध होता है,शरीर में सत्वगुण की वृध्दि होती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज ने कहा कि गीता में कहा गया है कि अन्न से ही प्राणी जीवित रहते हैं,अन्न से ही मन बनता है इसलिए अन्न का जीवन में सर्वाधिक महत्व है।अन्न से केवल शरीर का पोषण ही नहीं होता,अपितु मन,बुद्धि ,तेज व आत्मा का भी पोषण होता है।

इसी कारण अन्नप्राशन को संस्कार रूप में स्वीकार करके शुद्ध,सात्विक व पौष्टिक अन्न को ही जीवन में लेने का व्रत करने हेतु यह संस्कार सम्पन्न किया जाता है। मनुष्य के विचार,भावना,आकांक्षा एवं अंतरात्मा बहुत कुछ अन्न पर ही निर्भर करती है,इससे जीवन धारण करने की क्षमता उत्पन्न होती है।अन्न ही मनुष्य का स्वाभाविक भोजन है,उसे भगवान का कृपा प्रसाद समझ कर ग्रहण करना चाहिए।

महाभारत में है उल्लेख

अन्न का प्रभाव मनुष्य के जीवन पर कैसे होता है इस संदर्भ में महाभारत में एक रोचक कथा आती है-बाणों की शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह पांडवों को कोई उपदेश दे रहे थे कि अचानक द्रोपदी को हंसी आ गई। द्रौपदी के इस व्यवहार से पितामह को बड़ा आश्चर्य हुआ।उन्होंने द्रौपदी से हंसने का कारण पूछा।द्रौपदी ने विनम्रता से कहा- आपके उपदेशों में धर्म का मर्म छिपा है पितामह! आप हमें कितनी अच्छी-अच्छी ज्ञान की बातें बता रहें हैं।

यह सब सुनकर मुझे कौरवों की उस सभा की याद हो आई,जिसमें वे मेरे वस्त्र उतारने का प्रयास कर रहे थे।तब मैं चीख-चीख़कर न्याय की भीख मांग रही थी,लेकिन आप वहां पर होने के बाद भी मौन रहकर उन अधर्मियों का प्रतिवाद नहीं कर रहे थे।आप जैसे धर्मात्मा उस समय क्यों चुप रहे?दुर्योधन को क्यों नहीं समझाया,यही सोचकर मुझे हंसी आ गई। इस पर भीष्म पितामह गंभीर होकर बोले- बेटी। उस समय मैं दुर्योधन का अन्न खाता था,उसी से मेरा रक्त बनता था।जैसा कुत्सित स्वभाव दुर्योधन का है,वही असर उसका दिया अन्न खाने से मेरे मन और बुद्धि पर पड़ा।किन्तु अब अर्जुन के बाणों ने मेरे पाप के अन्न से बने रक्त को मेरे तन से बाहर निकाल दिया है और मेरी भावनाएं शुद्ध हो गई है,इसलिए अब मैं वही कर रहा हूँ जो धर्म के अनुकूल है।

इस अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद के जिला महामन्त्री श्री अतुल कुमार सिंह, अजय साहू, राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के महेश पवांर, साध्वी माँ देवेश्वरी, नेहा शर्मा, कैप्टन राम सिहं रावत, सुरेन्द्र विष्ट, सुनीता घिल्डियाल, ऋषिराम सिल्सवाल, धीरेन्द्र गांधी, जगदीश प्रसाद, गजेंद्र नेगी, नीलम रावत, आईपीएस आंचल मनवाल,ऋचा पालीवाल एवं बड़ी संख्या में महिलाएं एवं पुरुष मौजूद रहे. महापौर अनीता ममगांई और सन्त रसिक महाराज नें कनाडा में जन्मी भारतीय मूल की कन्या आयरा अंजनी थलासी का खीर खिलाकर अन्नप्राशन संस्कार किया गया.


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Govind Pundir

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