धामी सरकार ने बदला एक और फैसला…
घनसाली से लोकेंद्र जोशी। चार धाम स्थानम् बोर्ड को भंग कर धामी सरकार ने अपनी ही त्रिवेंद्र रावत की नेतृत्व वाली सरकार द्वारा देवस्थानम बोर्ड को भंग कर चुनौती देकर, साधु संतों तीर्थ पुरोहितों और सरकार के बीच चल रहा गतिरोध समाप्त हो गया।
देवस्थानम बोर्ड क्या था ?
देवस्थानम बोर्ड- उत्तराखंड की स्थापना चार धामों , बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री से जुड़े 51 मंदिरों की देखरेख करता था। टिहरी जनपद में चंद्रबदनी, सेम मुखेम नागराजा मंदिर,, देवप्रयाग रघुनाथ मंदिर एवं कीर्ति नगर राजराजेश्वरी मंदिर शामिल हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की विगत माह केदारनाथ धाम यात्रा से दो दिन पूर्व तीर्थ पुरोहितों के द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दर्शन नहीं करने दिया गया और भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत का काफी देर तक घेराव कर भारी विरोध हुआ। इसके साथ ही बोर्ड के विरोध में गंगोत्री में बाजार बंद कर रैली निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया गया। देवस्थानम बोर्ड खिलाफ लगातार आंदोलन को देखते हुए धामी सरकार को अपनी सरकार के द्वारा गठित उक्त बोर्ड को भंग करना पड़ा।
जँहा तक जानकारों का मानना है। यात्रियों की संख्या के हिसाब से चार धामों और उनके यात्रा मार्गों में भारी असुविधाओं का सामना यात्रियों को करना पड़ता है। उसे दूर करने के लिए चार धाम देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया था। किंतु त्रिवेंद्र सिंह सरकार ने साधु संतों और तीर्थ पुरोहितों को विश्वास में न लेकर बोर्ड का गठन कर अपनी सरकार के विरोध में ही खराब माहौल तैयार किया। जिसका खामियाजा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सरकार को कुर्सी गवां कर देना पड़ा।
देवस्थानम बोर्ड के गठन से पूर्व चार धाम और उसके अधीन 51 मंदिरों का संचालन विभिन्न मंदिर समितियों के अधीन संचालित होते हैं।
देवस्थानम बोर्ड का गठन जनवरी 2020 में तब के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किया था। इस बोर्ड के गठन के जरिए 51 मंदिरों का नियंत्रण राज्य सरकार के पास आ गया । उत्तराखंड में केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ चार धाम हैं. इन चारों धामों का नियंत्रण भी सरकार के पास आ गया था और तब से ही तीर्थ-पुरोहित इस फैसले को वापस लेने की मांग कर रहे थे।
इसी साल जुलाई में तीरथ सिंह रावत को हटाकर पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था। उन्होंने तीर्थ-पुरोहितों की मांग पर एक कमेटी का गठन किया और उसकी रिपोर्ट के आधार पर फैसला लेने का वादा किया था।
मुख्यमंत्री धामी ने 30 अक्टूबर तक फैसला लेना का वादा किया था, लेकिन इसमें एक महीने देरी होने के बावजूद भी धामी नेतृत्व वाली सरकार ने देवस्थानम बोर्ड को खत्म कर साधु संतों का आंदोलन समाप्त कर दिया।