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उप्पू गढ़ कू जवान धन रे कफ्फू चौहान

उप्पू गढ़ कू जवान धन रे कफ्फू चौहान
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16 वीं सदी की बात है गढ़वाली पंवार वंश का 37वा राजा अजय पाल जब अपने चांदपुर गढ़ के राज्य विस्तार के लिए गढ़वाल के अन्य 52 गढ़ों को अपने राज्य में मिलाने के लिए निकला तो उस समय उसके पास मात्र 4 गढ़ थे । अन्य गढ़ों को वह अपने राज्य में मिलाना चाहता था इसके लिए उसे एक-एक कर हर गढ़ पर आक्रमण करना था और उन्हें जीतना था। इन 52 गढ़ों में उप्पू गढ़ ऐसा था जिस पर राजा अजयपाल की भारी-भरकम सेना को लोहे के चने चबाने पड़े।

धीरे धीरे राजा अजयपाल ने जब एक एक करके संपूर्ण गढ़वाल पर अपना अधिकार कर लिया था तो अंतिम गढ़ उप्पू  बच गया था जिसे जीतना था। अब इस गढ़ पर राजा की नजर थी। इस गढ़ का गढ़पति नरेश कफ्फू चौहान था। जिसकी वीरता की गाथा चारों तरफ थी। अजय पाल ने इस गढ़ पर आक्रमण की ठान ली और रात में उप्पू के सामने भागीरथी नदी के किनारे नदी पर रमोली गढ़ की सीमा से आक्रमण कर दिया। आधी रात का समय था उप्पू गढ़ के लोगों को जैसे ही खबर मिली तो उन्होंने उप्पू गढ़ नरेश कफ्फू चौहान को खबर की। गढ़ नरेश ने सेना को तत्काल तैयार कर युद्ध की घोषणा कर दी और राजा जयपाल की भारी-भरकम सेना को ललकारा। 

ऐसे समय में कफ्फू चौहान की मां और पत्नी बड़ी बेचैन थी और  मां और पत्नी ने माता दुर्गा के मंदिर में कफ्फू के विजयी होने की मन्नत मांगी। वीर माता ने कफ्फू को तिलक लगाकर युद्ध के लिए रवाना किया।

कहा जाता है कि कफ्फू चौहान की मा ने रणभूमि में जाते हुए कफ्फू के सरदार से कहा कि यदि मेरा पुत्र भूमि में वीरगति को प्राप्त हो गया तो इसकी मुझे खबर कर देना। सरदार ने कहा कि पहले तो यह स्थिति नहीं आएगी और यदि ऐसी स्थिति आ गई तो मैं तुम्हें तुरंत सूचित करूंगा। 

कफ्फू चौहान की सेना ढोल नगाड़ों और घुड़सवारों के साथ युद्ध के लिए मैदान में जा पहुंची। दोनों ओर से खूब संघर्ष हुआ। कफ्फू की सेना के आगे अजयपाल की सेना ने घुटने टेक लिए और कफ्फू की सेना ने अजयपाल की सेना को 15 किमी दूर तक याने जोगियाणा तक खदेड़ दिया। जब कफ्फू दूर तक दिखाई नहीं दिया तो कफ्फू की सेना के सरदार को आशंका हो गई कि शायद कफ्फू गढ़ के काम आ गया है। वह कफ्फू की मां को सूचना देता है कि कफ्फू चौहान युद्ध में कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं अर्थात वीरगति को प्राप्त हो गए हैं। इस खबर को सुनते ही उप्पू गढ़ में हाहाकार मच गया। कफ्फू कि माँ रोने चिल्लाने लगी और राजा अजयपाल की गुलामी के डर से उप्पू गढ़ में आग लगा दी। खुद पर भी आग लगा दी। कफ्फू की रानियों ने रोते बिलखते खुद को आग के हवाले कर दिया और सती हो गयी।

जब कफ्फू राजा की सेना को खदेड़ने के बाद वापस उप्पू गढ़ लौट रहा था तो उप्पू गढ़ आग के हवाले हो गया था। माँ और रानियों की मौत की खबर सुनते ही वह मूर्छित हो गया। इसी का फायदा उठाकर राजा अजयपाल के सैनिक उसे बंदी बनाकर ले गए। 

इसमें मत भिन्नता भी है। यह भी कहा जाता है कि कफ्फू ने जब अपनी मां और रानियों को मृत पाया तो अपना सिर मुंडवा दिया। कहा जाता है कि उसे वरदान प्राप्त था कि जब तक उसके सिर पर बाल रहेंगे कोई उसे हरा नहीं सकता है। सिर मुंडवाने के बाद बताते हैं कि उसकी शक्ति समाप्त हो गई थी और राजा अजयपाल के सैनिक उसे गिरफ्तार कर दरबार में ले गए। राजा अजयपाल ने उसे हार स्वीकार करने को कहा, उसे कई प्रलोभन दिए गए मगर वह नहीं माना। कफ्फू चौहान की एक ही रट थी कि शेर किसी के द्वारा किए गए शिकार की जूठन नहीं खाता है।

जब तमाम कोशिशों के बाद कफ्फू नहीं माना तो राजा अजय पाल ने कफ्फू को सजा-ए-मौत सुना दिया और आदेश दिया कि कफ्फू की गर्दन इस प्रकार से काटी जाए कि उसका सिर सीधे राजा के चरणों में जाकर गिरे 

यह आदेश सुनकर कफ्फू ने जमीन से दो मुठ्ठी रेत उठाकर अपने मुंह में भर दी। गर्दन पर तलवार के पढ़ते ही कफ्फू चौहान की गर्दन दूसरी दिशा में जा गिरी और मुंह में भरी रेत अजय पाल के मुंह पर जा पड़ी। इस प्रकार से उप्पू गढ़ का इतिहास यहीं पर समाप्त हो गया।

गढ़ नरेश कफ्फू की वीरता और उप्पू गढ़ की गाथा पर गढ़वाल भर में स्थानीय गीत और पँवाड़े खूब प्रचलित हैं। प्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी अपने एक गीत के माध्यम से उनकी वीरता महिमा मंडित की—

” वीर भड़ों कू देश, बावन गढ़ों कू देश

जै जै बदरी केदार, गढ़ भूमि गढ़ नरेश ।

उप्पू गढ़ कू जवान, धन रे कफ्फू चौहान

काटो तैं सिर नि झुकी कनु रै होलू स्वाभिमान।”

आज यह ऐतिहासिक उप्पू गढ़ जो एक पहाड़ी टीले पर था विश्व स्तरीय टिहरी बांध झील में समा गया है।


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Govind Pundir

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