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प्रवासी भारतीयों ने की सिडनी में साहित्यिक गोष्ठी

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(सिडनी से दिनेश जोशी)

सिडनी। सिडनी शहर के वैस्ट पैननटिल हिल्स एरिया में भारतीय साहित्य एवम कला संस्कृति परिषद आस्ट्रेलिया (इलासा) संस्था द्वारा आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में भाग लेने का अवसर मिला। यह संस्था पिछले दस वर्षों से निरंतर साहित्य कला संस्कृति के सृजन,प्रचार,प्रसार विकास हेतु विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती रही है।
यहां के साहित्यिक अभिरुचि वाले प्रवासी भारतीयों के मोबाइल पर फेसबुक ह्वाटसैप  के माध्यम से गोष्ठी की सूचना मिल जाती है। तथा खुला आमंत्रण कुछ इस प्रकार मिलता है।
“आप सब निमंत्रित हैं, आना चाहें तो बतला दें। पता भेज देंगे ।”
इस दोपहर की गोष्ठी में मेजबान सदस्य के घर के सुसज्जित बड़े से बेसमेंट हाल में लगभग पच्चीस – तीस रचनाकारों,साहित्य प्रेमियों का जमावड़ा लगा था। गोष्ठी अनौपचारिक थी लेकिन सुरुचिपूर्ण व सिलसिलेवार तरीके से मौजूद सदस्यों के संक्षिप्त परिचय के पश्चात एक एक कर रचनाएं पढ़ने सुनाने के आग्रह के साथ प्रारंभ हुई।
गोष्ठी में मौजूद अधिकांश सदस्यों ने अपनी हिंदी कवितायें गीत ग़ज़ल आदि रचनाएं बड़े ही मनोयोग से सुनाई, एक सज्जन ने व्यंग्य गद्य रचना अपने संकलन से पढ़ी। एक कन्नड़ भाषी महिला ने अंग्रेजी की लघुकथाएं तथा एक अन्य कवयित्री ने अंग्रेजी कविता पढ़ी। एक ठेठ पंजाबी सज्जन जो बता रहे थे,’मैं पिछले पचास वर्ष से सिडनी में रह रहा हूं,। उन्होंने पंजाबी में लिखी रचनाएं पढ़ी।
गोष्ठी का सुगठित संचालन सुश्री रेखा राजवंशी ने किया जो स्वयं एक प्रतिष्ठित रचनाकार हैं साथ ही इस संस्था की निदेशक व संयोजक हैं। प्रतिभागी सदस्यों में कइयों के  एकाधिक काव्य संकलन,उपन्यास व अन्य संकलन प्रकाशित हुए हैं।
मुझे भी पहली बार इलासा की गोष्ठी में शामिल होने व रचना पाठ का अवसर मिला। सुदूर विदेश के महानगर की इस घरेलू गोष्ठी में इतने लोगों का जुटना अपने यहां के महानगरों व शहरों की अपेक्षा अत्यधिक उत्साहजनक व प्रेरणादायक लगा। ऐसी जीवंत बड़ी गोष्ठी में (औपचारिक सम्मेलनों को छोड़कर) देहरादून या अन्यत्र शहर में, पिछले कई वर्षों से मैंने प्रतिभाग किया हो,याद नहीं पड़ता। पहले, मैडम कुसुम चतुर्वेदी जी या ब्रह्मदेव जी के आवास पर हुई गोष्ठियों से कुछ कुछ समानता प्रतीत हो रही है।
यह अवश्य था कि गोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं पर कोई आलोचनात्मक नुक्ताचीनी नहीं हो रही थी। लगभग हर रचनाकार के अनुभूत अहसासों व अपनी भाषा में उनकी अभिव्यक्ति के उत्साह व उल्लास को सराहा जा रहा था। गोष्ठी हालांकि नितांत अनौपचारिक थी,फिर भी सम्मान व परंपरा निर्वाह हेतु संचालक ने प्रारम्भ में स्वागत के वक्त ही आस्ट्रेलिया देश व टौरेस द्वीप के आदिवासी जनों के स्मरण व इस धरती के असली कस्टोडियनों के रूप में उनके प्रति आभार व कृतज्ञता प्रकट की। यह परंपरा यहां के हर आधिकारिक गैर आधिकारिक समारोहों में अनिवार्य रुप से निभाई जाती है। गोष्ठी की अध्यक्षता हेतु वरिष्ठ सदस्य,प्रोफेसर आर पी माथुर को नामित किया गया जो वर्षों तक अलीगढ़ में भौतिक विज्ञान के शिक्षक रहे हैं तथा अब सिडनी प्रवासी हैं।
गोष्ठी लगभग तीन घंटे तक चली,उसके पश्चात मेजबान के घर के भूतल पर बने विशाल बैठक कम भोजनकक्ष में जलपान की दिव्य(हमारे यहां वाली दिव्य नहीं) व्यवस्था थी। यूं मेजबान दम्पत्ति ने स्वयं कई स्वादिष्ट चीजें सजाई थी,पर अपना प्लैटर साथ लाने का निर्देश था। अनेक लोगों ने अपने घर से लाये खानपान को भी मेजबान की डायनिंग टेबिल पर सजा दिया था। इस तरह चाय के साथ विविध तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ लेने के पश्चात विशेष रूप से मेहरबान मेजबान,राजीव मैनी दम्पत्ति को
धन्यवाद देकर इस यादगार गोष्ठी का समापन विसर्जन हुआ।
                   


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