विश्व पर्वत दिवस पर आयोजित हुई ‘पर्वत संसद’
जलशक्ति मंत्रालय की तरह ही गठित हो पर्वतशक्ति मंत्रालय – ग्रीनमैन विजयपाल बघेल
पर्वतीय संसाधनों को बचाने आगे आएं युवा-कुंवर भवानी प्रताप सिंह
पहाड़ी संस्कृति की रक्षा करने से ही होगा पर्वतों का संरक्षण – डा० अर्चना सुयाल
देहरादून 11 दिसंबर। धरती के कुल भू भाग का 24 फीसदी क्षेत्र पहाड़ी है, सभी देश अपने अपने तरीके से पर्वतों की रक्षा करते हैं लेकिन पृथ्वी की सबसे पुरानी पर्वतमाला अरावली को भारत ने अपने विनाशकारी विकास के नाम पर तहस नहस कर दिया है। अब विश्व की सबसे नई पर्वतश्रृंखला हिमालय, जो भारतवर्ष का मुकुट है उसकी प्राकृतिक संरचना को ध्वस्त किया जा रहा है। जिस प्रकार भारत सरकार ने जल संरक्षण के लिए जल शक्ति मंत्रालय बनाया है उसी तरह पर्वत शक्ति विभाग जबतक नहीं बनेगा तबतक न तो पहाड़ों की रक्षा हो सकेगी और ना ही इनका संवर्द्धन हो सकेगा, इसलिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की गंभीर होती समस्या के निदान हेतु पर्वतशक्ति मंत्रालय का गठन ही एकमात्र विकल्प है।
उक्त विचार विश्व पर्वत दिवस के अवसर पर टिहरी हाउस में आयोजित पर्वत संसद को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए ग्रीन मैन ऑफ इंडिया श्री विजयपाल बघेल ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड से हर क्रांति का शंखनाद होता है चाहे चिपको आंदोलन हो या योग दिवस की वैश्विक मान्यता, उसी परंपरा को फिर पर्वतशक्ति मंत्रालय की अलग से आवश्यक मांग के रूप में रखकर सरकार को इसके लिए मजबूर करना है।
भारतीय वृक्ष न्यास, युवा भारती, राष्ट्रीय सेवा योजना एवं भारत स्काउट एवं गाइड के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पर्वत संसद की अध्यक्षता युवा भारती के अध्यक्ष कुंवर भवानी प्रताप सिंह तथा संचालन उत्तराखंड पलायन निवारण आयोग के सदस्य सुरेश सुयाल ने किया। पर्वत संसद की थीम “एक स्थाई भविष्य के लिए पर्वतीय समाधान; नवाचार, अनुकूलन तथा युवा” विषय पर आधारित थी जिसे विश्व पर्वत दिवस-24 के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित करके पूरी दुनिया में आयोजित सभी गतिविधियों द्वारा संचालित किया गया। दैशिक शास्त्र की प्रतिष्ठात्री डा0 अर्चना सुयाल ने इस अवसर पर पहाड़ी संस्कृति को जीवित रखने पर बल देते हुए कहा कि पहाड़ी संस्कृति की हर परंपरा पर्वत संरक्षण के लिए समर्पित होती है। हमें अपनी संस्कृति बचानी है इसके बचने से पर्वत स्वतः ही बच जायेंगे।
पर्वत संसद के संयोजक डा0 भान सिंह नेगी ने पहाड़ों से बिना रोजगार के युवाओं के पलायन पर चिंता जताते हुए कहा कि पर्वत सुरक्षा के अभियान को आजीविका एवं उद्यम के साथ जोड़ना होगा। रोजगारपरक योजनाओं के माध्यम से पानी और जवानी को बचा लेंगे तो पहाड़ अपने आप बच जायेगा।
स्वदेशी जागरण मंच से पधारे सुरेंद्र सिंह ने अपनी पहाड़ी जीवनशैली के परंपरागत तरीकों में आए बदलावों पर चिंता जताई, उन्होंने कहा जल, जंगल और जमीन के साथ हमारा जो रिश्ता था, जो दूरियां बढ़ी है उनके दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। डा0 अर्चना नोटियाल ने अपनी मातृभाषा से बढ़ती विमुखता को पर्वतीय संस्कृति के लिए घातक बताते हुए कहा कि हम अपनी मातृभाषा का ही प्रयोग करें। ट्री ट्रस्ट ऑफ इंडिया के निदेशक रंजीत सिंह, स्काउट एवं गाइड के प्रशासनिक अधिकारी वीरेंद्र सिंह रावत, राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी, कलाकार तनुश्री मिश्रा, अभिषेक भोड़ाई, भारत वशिष्ठ, सुबोध उनियाल, परमजीत सिंह, देव विष्ट, अमन कुमार झा, सुनील चमोली, मनीष सजवान, गोतम विष्ट, मोहन पासी, सचिन बिष्ट आदि ने अपने विचार रखे। पर्वत संसद में तीन प्रस्तावों पर आम सहमति बनी जिनमें पहिला पर्वत शक्ति मंत्रालय का गठन, नंदादेवी चोटी को राष्ट्रीय पर्वत के रूप में की घोषणा तथा हिमालय नीति निर्धारण। तीनों प्रस्तावों को भारत सरकार को प्रेषित कर दिया गया है।