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इस बार दस दिन का है नवरात्रि पर्व: हाथी पर सवार होकर आएंगी मां दुर्गा और डोली पर जाएंगी

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हरिद्वार। नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार के परमाध्यक्ष नृसिंह पीठाधीश्वर  स्वामी रसिक महाराज ने बताया कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के दिन शारदीय नवरात्रि की शुरूआत होती है। इस बार शारदीय नवरात्रि पर्व 22 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है। खासियत  यह है कि ये पर्व दस दिन का है। इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आएंगी और डोली पर जाएंगी।

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करते हैं। उसके साथ ही मां दुर्गा की पूजा प्रारंभ होती है। नवरात्रि के 9 दिनों तक कलश पूजा स्थान पर ही रहता है। दुर्गा विसर्जन के दिन कलश को हटाया जाता है। कलश स्थापना का मुहूर्त सुबह और दोपहर दोनों समय है। कलश स्थापना के लिए पूजा सामग्री की व्यवस्था पहले ही कर लें। 

इस बार 10 दिनों का शारदीय नवरात्रइस बार नवरात्र 10 दिनों के होंगे। क्योंकि चतुर्थी तिथि दो दिन पड़ रही है। 30 सितंबर को अष्टमी, जबकि एक अक्टूबर को नवमी पूजन होगा। इसके बाद दो अक्टूबर को दशमी के दिन दशहरा पर्व मनायाजाएगा। नौ से अधिक दिनों का नवरात्र शुभ फलदायी होता है। 

मां दुर्गा का हाथी पर होगा आगमन, डोली पर विदाई 

इस बार एक शुभ संयोग यह है कि इस बार “मां” दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं और उनकी “विदाई” डोली पर होनी है। हाथी पर सवार होकर मां का आगमन, इसका प्रतीक है कि अगले वर्ष अच्छी बारिश होगी। वहीं डोली पर मां की विदाई सुख-समृद्धि का प्रतीक है। 

शारदीय शुभ मुहूर्त

आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि का शुभारंभ: 22 सितंबर, सोमवार, 01:23 प्रातः से आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि का समापन: 23 सितंबर, मंगलवार, 02:55 प्रातः पर 

शुक्ल योग: प्रात:काल से लेकर शाम 07:59 रात्रि तक 

ब्रह्म योग: शाम 07:59 रात्रि से पूर्ण रात्रि तक

उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र —   प्रात:काल से 11:24  प्रातः तक 

हस्त नक्षत्र: 11:24 प्रातः से पूरे दिन 

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

इस बार कलश स्थापना शुभ मुहूर्त 22 सितंबर को सुबह 6 बजकर 9 मिनट से सुबह के 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगा।-अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त: सुबह में 06:09 बजे से सुबह 07:40 बजे तक

 शुभ-उत्तम मुहूर्त: सुबह 09:11 बजे से सुबह 10:43 बजे तक

कलश स्थापना अभिजीत मुहूर्त: 11:49 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक 

कलश स्थापना सामग्री

मिट्टी या पीतल का कलश, गंगाजल, जौ, आम के पत्ते, अशोक के पत्ते, केले के पत्ते, सात प्रकार के अनाज, जटावाला नारियल, गाय का गोबर, गाय का घी, अक्षत्, धूप, दीप, रोली, चंदन, कपूर, माचिस, रुई की बाती, लौंग, इलायची, पान का पत्ता, सुपारी, फल, लाल फूल, माला, पंचमेवा, रक्षासूत्र, सूखा नारियल, नैवेद्य, मां दुर्गा का ध्वज या पताका, दूध से बनी मिठाई आदि। 

ऐसे करें घट स्थापना-

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन स्नान के बाद व्रत और पूजा का संकल्प करें। फिर पूजा स्थान पर ईशान कोण में एक चौकी रखें और उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछा दें।-उसके बाद उस पर सात प्रकार के अनाज रखें। फिर उस पर कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर रक्षासूत्र बांधें और रोली से तिलक लगाएं।– इसके बाद कलश में गंगा जल डालें और पवित्र जल से उसे भर दें। उसके अंदर अक्षत्, फूल, हल्दी, चंदन, सुपारी, एक सिक्का, दूर्वा आदि डाल दें और सबसे ऊपर आम और अशोक के पत्ते रखें। फिर एक ढक्कन से कलश के मुंख को ढंक दें।-उस ढक्कन को अक्षत् से भरें। सूखे नारियल पर रोली या चंदन से तिलक करें और उस पर रक्षासूत्र लपेटें। फिर इसे ढक्कन पर स्थापित कर दें। उसके बाद प्रथम पूज्य गणेश जी, वरुण देव समेत अन्य देवी और देवताओं का पूजन करें।– कलश के पास मिट्टी डालकर उसमें जौ डालें और पानी से उसे सींच दें। इस जौ में पूरे 9 दिनों तक पानी डालना है। ये जौ अंकुरित होकर हरी भरी हो जाएगी। हरी जौ सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। कलश के पास ही एक अखंड ज्योति भी जलाएं, जो महानवमी तक जलनी चाहिए। 

कलश स्थापना का महत्व

नवरात्रि में कलश स्थापना करने के बाद मां दुर्गा का आह्वान करते हैं। कलश स्थापना करके ही त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ अन्य देवी और देवताओं को इस पूजा का साक्षी बनाते हैं। धर्म शास्त्रों में कलश को मातृ शक्ति का प्रतीक मानते हैं। नवरात्रि के 9 दिनों में कलश में सभी देवी और देवताओं का वास होता है। 

घटस्थापना के नियम

 नवरात्रि  पूजा में इस्तेमाल किया जाने वाला घट गंदा या टूटा नहीं होना चाहिए।घट में गंदा पानी व पूजा सामग्री न भरें।घट को स्थापित करने के बाद 9 दिन तक उसे अपनी जगह से न हटाएं।अपवित्र हाथों से घट को स्पर्श न करें।जिस जगह पर घट को स्थापित किया है, उसे और उसके आसपास वाली जगह को शुद्ध रखें।यदि आपने अपने घर में घट की स्थापना की है तो 9 दिन तक घर को खाली न छोड़ें।माता दुर्गा के साथ घट की भी नियमित रूप से पूजा करें।9 दिन बाद घट में मौजूद पूजा सामग्री को विधि-पूर्वक किसी नदी या बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। 

माता रानी के श्रृंगार की सामग्री

लाल चुनरी, चूड़ी, बिछिया, पायल, माला, कान की बाली, नाक की नथ, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, काजल, आलता, नेलपॉलिश, लिपस्टिक, इत्र।

             इतने दिन होगी पूजा

पहला दिन 22 सितंबर, प्रतिपदा, शैलपुत्री

दूसरा दिन       23 सितंबर, द्वितीया, ब्रह्मचारिणी

तीसरा दिन 24 सितंबर, तृतीया, चंद्रघंटा

चौथा दिन 25 सितंबर, तृतीया, चंद्रघंटा (तिथि की वृद्धि के कारण)

पांचवा दिन 26 सितंबर, चतुर्थी, कूष्मांडा

छठा दिन 27 सितंबर, पंचमी, स्कंदमाता

सातवां दिन 28 सितंबर, षष्ठी, कात्यायनी

आठवां दिन 29 सितंबर, सप्तमी, कालरात्रि

नौवां दिन 30 सितंबर, महाअष्टमी, महागौरी दसवां दिन 01 अक्टूबर, महानवमी, सिद्धिदात्री, दो अक्टूबर को विजय दशमी पर्व यानि कि दशहरा पर्व होगा। 

नवरात्रि का व्रत करने के नियम

नवरात्रि व्रत के दौरान क्रोध और नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए। वहीं, किसी भी व्यक्ति बुराई करने और झूठ बोलने से भी बचना चाहिए।नवरात्रि के व्रत के दौरान घर में तामसिक भोजन नहीं बनाना चाहिए।व्रत रखने वालों को नवरात्रि में लकड़ी के तख्त या बेड पर नहीं सोना चाहिए। साथ ही, ज्यादा गुदगुदे गद्दे का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।जिन लोगों को शरीर से जुड़ी गंभीर समस्या है और उन्हें ऐसा लगता है कि उनका व्रत बीच में टूट सकता है, तो ऐसे में नवरात्रि का व्रत नहीं करना चाहिए।


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Govind Pundir

*** संक्षिप्त परिचय / बायोडाटा *** नाम: गोविन्द सिंह पुण्डीर संपादक: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल टिहरी। उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त वरिष्ठ पत्रकार। पत्रकारिता अनुभव: सन 1978 से सतत सक्रिय पत्रकारिता। विशेषता: जनसमस्याओं, सामाजिक सरोकारों, संस्कृति एवं विकास संबंधी मुद्दों पर गहन लेखन और रिपोर्टिंग। योगदान: चार दशकों से अधिक समय से प्रिंट व सोशल मीडिया में निरंतर लेखन एवं संपादन वर्तमान कार्य: गढ़ निनाद न्यूज़ पोर्टल के माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता को नई दिशा प्रदान करना।

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