श्री देवी भागवत कथा हमारी अंतरात्मा को पवित्र करती है: डॉ दुर्गेश आचार्य महाराज

टिहरी गढ़वाल। शहीद स्मारक बौराड़ी में चल रही श्रीमद् देवी भागवत कथा अमृत महोत्सव के छठे दिन राष्ट्रीय संत डॉ. दुर्गेश आचार्य महाराज ने भक्तों को देवी भागवत कथा के प्रेरणादायक प्रसंग सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।
डॉ दुर्गेश आचार्य महाराज जी ने कहा कि पूर्वकाल में शुंभ-निशुंभ नामक दो असुर भाइयों ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि वे किसी पुरुष द्वारा मारे नहीं जा सकते। इसके बल पर इन्होंने देवताओं को स्वर्ग से निकाल बाहर किया और तीनों लोकों पर राज करने लगे।
देवताओं ने मां दुर्गा की आराधना की। तब देवी कौशिकी (दुर्गा) प्रकट हुईं। शुंभ-निशुंभ ने देवी को विवाह हेतु प्रस्ताव भेजा, पर देवी ने शर्त रखी कि जो युद्ध में पराजित करेगा, उसी से विवाह करेंगी। असुरों की सेनाएं, धूम्रलोचन, चंड-मुंड और रक्तबीज जैसे सेनापति देवी से युद्ध में मारे गए। अंतत: शुंभ-निशुंभ स्वयं रणभूमि में आए। देवी से भीषण युद्ध हुआ, जिसमें निशुंभ को देवी ने त्रिशूल मारकर मार दिया। शुंभ से आकाश-युद्ध हुआ, अंत में देवी ने उसे भी अपने त्रिशूल से मारकर उसका अंत कर दिया। इस प्रकार, देवी ने शुंभ-निशुंभ व सारे राक्षसों का संहार कर संसार को उनके आतंक से मुक्त किया और देवताओं को उनका स्थान वापस दिलाया।
अगले प्रसंग में डॉ दुर्गेश महाराज जी ने कहा कि प्रलय काल में विष्णु की नाभि से उत्पन्न मधु और कैटभ नामक असुरों ने ब्रह्मा जी पर आक्रमण किया। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर देवी ने विष्णु को योग निद्रा से जगाया। विष्णु ने दोनों असुरों से युद्ध किया, पर वे अजेय थे। देवी की माया से विष्णु ने उनसे वर माँगा कि वे उनके ही हाथों मारे जाएँ। असुरों ने जलरहित स्थान पर वध की शर्त रखी। तब विष्णु ने अपनी जंघा पर शुष्क स्थान बनाया और सुदर्शन चक्र से उनका वध किया।
आगे उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में कुशस्थली के धर्मपरायण राजा सुरथ को यवन राजाओं के आक्रमण में हार का सामना करना पड़ा। राज्य और सेना खोने के बाद वे जंगल में भटकते हुए नदी किनारे दुखी बैठे थे। उसी जंगल में धनी वैश्य समाधि, जिनका धन उनके पुत्रों ने हड़प लिया था, भी चिंतित थे। दोनों की मुलाकात हुई और अपनी व्यथा साझा की। मोह और दुख से मुक्ति की तलाश में दोनों मेधा ऋषि के आश्रम पहुंचे। ऋषि ने उन्हें देवी माहात्म्य (दुर्गा सप्तशती) की कथा सुनाई, जिसमें देवी के मधु-कैटभ, महिषासुर और शुम्भ-निशुम्भ वध का वर्णन था। कथा से प्रेरित होकर सुरथ और समाधि ने एक वर्ष तक कठोर तपस्या की।
देवी भगवती ने दर्शन देकर समाधि को धन और सुरथ को नया राज्य “सुरथ पुर” प्रदान किया। सुरथ ने धर्मनिष्ठ शासन किया, लेकिन अंत में राज्य त्याग कर देवी भक्ति में लीन हो गए। मेधा ऋषि ने कहा, “देवी कथा का श्रवण ही मोक्ष का मार्ग है।” यह कथा भक्तों को कष्टों से मुक्ति और आध्यात्मिक शांति का संदेश देती है।
कथा में मोहन सिंह रावत अध्यक्ष नगर पालिका परिषद टिहरी समेत तमाम श्रद्धालुओं ने कथा का रसपान किया।